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चतुर्दश उद्देशक - अतिरिक्त पात्र देने, न देने का प्रायश्चित्त
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अतिरिक्त पात्र देने, न देने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू अइरेगं पडिग्गहं खुडगस्स वा खुड्डियाए वा थेरगस्स वा थेरियाए वा अहत्थच्छिण्णस्स अपायच्छिण्णस्स अणासाछिण्णस्स अकण्णच्छिण्णस्स अणो?च्छिण्णस्स सक्कस्स देइ देंतं वा साइज्जइ॥६॥
जे भिक्खू अइरेगं पडिग्गहं खुडगस्स वा खुड्डियाए वा थेरगस्स वा थेरियाए वा हत्थच्छिण्णस्स पायच्छिण्णस्स णासाछिण्णस्स कण्णच्छिण्णस्स ओट्ठच्छिण्णस्स असक्कस्स ण देइ ण देंतं वा साइज्जइ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - खुड्डगस्स - क्षुल्लक - बाल साधु के लिए, खुड्डियाए - क्षुल्लिकाबाल साध्वी के लिए, थेरगस्स - स्थविर - वृद्ध साधु के लिए, थेरियाए - स्थविरा - वृद्ध साध्वी के लिए, अहत्थच्छिण्णस्स - अहस्तच्छिन्न - जिसके हाथ कटे हुए न हो, अपायच्छिण्णस्स - अपादच्छिन्न - जिसके पैर कटे हुए न हो, अणासाछिण्णस्स - . अनासाच्छिन्न - जिसका नाक कटा हुआ न हो, अकण्णच्छिण्णस्स - अकर्णच्छिन्न - जिसके कान कटे हुए न हो, अणो?च्छिण्णस्स - अनोष्टच्छिन्न - जिसके होंठ कटे हुए न हो, सक्कस्स - शक्त - शक्ति युक्त या समर्थ।
भावार्थ - ६. जो भिक्षु बाल साधु-साध्वी या वृद्ध साधु-साध्वी को, जिनके हाथ पैर, नाक, कान एवं होठ कटे हुए न हों, जो सशक्त- शारीरिक दृष्टि से शक्तियुक्त या समर्थ हों, अतिरिक्त पात्र देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है।
.७. जो भिक्षु बाल साधु-साध्वी या वृद्ध साधु-साध्वी को, जिनके हाथ, पैर, नाक, कान एवं होंठ कटे हुए हों, जो अशक्त - शारीरिक दृष्टि से शक्ति हीन या. असमर्थ हों, अतिरिक्त पात्र नहीं देता अथवा न देने वाले का अनुमोदन करता है। ___ऐसा करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - इन सूत्रों में बाल साधु-साध्वी और स्थविर साधु-साध्वी का उल्लेख हुआ है। जैन परंपरानुसार नौ वर्ष की आयु से सोलह वर्ष की आयु तक के साधु-साध्वी बाल शब्द द्वारा अभिहित किए जाते हैं। साठ वर्ष या उससे अधिक आयु के साधु-साध्वी स्थविर कहे जाते हैं।
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