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________________ ॥ णमो सिद्धाणं ॥ निशीथ सूत्र पढमो उद्देसओ - प्रथम उद्देशक अब्रहाचार्य मूलक हस्त-कर्म का प्रायश्चित्त जे भिक्खू हत्थकम्मं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ १ ॥ कठिन शब्दार्थ - जे - जो, भिक्खूं - भिक्षु - साधु, हत्थकम्मं - हस्त-कर्म (हस्त मैथुन), करेइ करता है, करेंतं करते हुए का, साइज्जइ - अनुमोदन करता है अभिरुचि लेता है। - भावार्थ १. जो साधु (वेद - मोहोदय के परिणामस्वरूप ) हस्त - कर्म करता है या हस्त-कर्म करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है । विवेचन - यद्यपि पंचमहाव्रतधारी साधु के लिए प्रत्येक महाव्रत का महत्त्व है। उनके परिपालन में वह सदैव जागरूक रहे, यह वाञ्छित है। उनमें भी ब्रह्मचर्य का विशेष महत्त्व है, क्योंकि वेद-मोहोदय के परिणामस्वरूप कामवासना - जनित दुष्कर्म आशंकित रहते हैं । हस्तकर्म, एक ऐसा ही कृत्य है। वह हर किसी के लिए सर्वथा परिहेय, परित्याज्य और निंदनीय है, फिर साधु की तो बात ही क्या ? संयममय, पवित्र तथा उज्ज्वल जीवन के संवाहक साधु को ऐसे जघन्य घृणास्पद कर्म से सदैव बचना चाहिए । काम - विजय के लिए मन में सदैव ब्रह्मचर्य मूलक निर्मल, शुद्ध भाव परिणमनशील रहें, यह आवश्यक है । जो अन्तःकरण में वैसे भावों का चिन्तन, मनन करता है, वह हस्त-कर्म जैसे कुकृत्य में लग कर पतित नहीं होता । Jain Education International साधु तो ऐसे कुकृत्य से सदा बचते ही रहते हैं, किन्तु कदाचन परिणामों में अपवित्रता आने से ऐसा घटित न हो जाए, इस दृष्टि से जागरूक बने रहने की प्रेरणा देने हेतु यह सूत्र For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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