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निशीथ सूत्र
आहार, विज्जापिंड - विद्यापिण्ड - रोहिणी आदि स्त्रीदेवताधिष्ठित विद्या या चामत्कारिक प्रयोग द्वारा प्राप्त आहार, मंतपिंडं - मंत्रपिण्ड - पुरुषदेवताधिष्ठित मरण-मोहन-वशीकरणउच्चाटन रूप मंत्र प्रभाव से प्राप्त आहार, चुण्णयपिंडं - चूर्ण पिण्ड - मंत्राभिषिक्त विविध वस्तुओं के चूर्ण - वशीकरण - भस्मप्रक्षेपण - भुरकी के प्रभाव से प्राप्त आहार, अंतद्धाणपिंडंअंतर्धानपिण्ड - अपने आपको मंत्रादि प्रयोग द्वारा अन्तर्हित कर - अदृश्य बना कर प्राप्त भोजन, जोगपिंडं - योगपिण्ड वशीकरण पादलेप, अफ़्रधान आदि योग इत्यादि मंत्र योग. पूर्वक प्राप्त आहार।
भावार्थ - ६४. जो भिक्षु धातृपिण्ड भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है। ६५. जो भिक्षु दूतपिण्ड भोगता है अथवा भोगते हुए का अनुमोदन करता है। ६६. जो भिक्षु निमित्तपिण्ड भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है। ६७. जो भिक्षु आजीविकपिपड़ भोगता है अथवा भोगते हुए का अनुमोदन करता है। ६८. जो भिक्षु वनीपकपिण्ड भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है। . ६९. जो भिक्षु चिकित्सापिण्ड भोगता है अथवा भोगते हुए का अनुमोदन करता है। ७०. जो भिक्षु कोपपिण्ड भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है। ७१. जो भिक्षु मानपिण्ड भोगता है अथवा भोगते हुए का अनुमोदन करता है। ७२. जो भिक्षु मायापिण्ड भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है। ७३. जो भिक्षु लोभपिण्ड भोगता है अथवा भोगते हुए का अनुमोदन करता है। ७४. जो भिक्षु विद्यापिण्ड भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है। ७५. जो भिक्षु मंत्रपिण्ड भोगता है अथवा भोगते हुए का अनुमोदन करता है। ७६. जो भिक्षु चूर्णपिण्ड भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है। ७७. जो भिक्षु अन्तर्धानपिण्ड भोगता है अथवा भोगते हुए का अनुमोदन करता है। ७८. जो भिक्षु योगपिण्ड भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है। ऐसा करने वाले भिक्षु को लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
इस प्रकार उपर्युक्त ७८ सूत्रों में किए गए किसी भी प्रायश्चित्त का, तद्गत दोषों का सेवन करने वाले भिक्षु को उद्घातिक परिहार-तप रूप लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आंता है।
इस प्रकार निशीथ अध्ययन (निशीथ सूत्र) में त्रयोदश उद्देशक परिसमाप्त हुआ।
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