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निशीथ सूत्र
सुमिणं - स्वप्न, विजं - विद्या - मारण-मोहन-वशीकरण-उच्चाटन रूप विद्या, पठंजइ - प्रयुक्त करता है, - मंत्र, जोग - योगकरण - अनेक वस्तुओं के संयोग से निर्मित चूर्ण आदि के प्रक्षेप से मन आदि प्रयोग करना। ___ भावार्थ - १७. भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के लिए कौतुककर्म करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है।
१८. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के लिए भूतिकर्म करता है अथवा करते हुए का अनुमोदन करता है। .
१९. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के लिएः प्रश्न कार्य (देवता से शुभाशुभ फल पृच्छा रूप कार्य) करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। ____२०. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के लिए देवादि से बार-बार प्रश्न करता है अथवा करते हुए का अनुमोदन करता है।
२१. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को विगत (अतीत) के निमित्त फल बतलाता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है।
२२. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के शारीरिक लक्षणों के आधार पर भविष्य आदि कहता है. या कहने वाले का अनुमोदन करता है।
२३. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को तिल, मशा आदि चिह्नों के अनुसार शुभाशुभ . फल कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है।
२४. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को स्वप्नों का शुभाशुभ फल बतलाता है या बतलाते हुए का अनुमोदन करता है।
२५. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के हिताहित के लिए विद्या (कुत्सित विद्या) प्रयुक्त करता है अथवा प्रयुक्त करने वाले का अनुमोदन करता है।
२६. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के हिताहित के लिए मंत्र प्रयुक्त करता है अथवा प्रयुक्त करने वाले का अनुमोदन करता है।
२७. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के हिताहित के लिए योग प्रयुक्त करता है अथवा प्रयुक्त करने वाले का अनुमोदन करता है। ____इस प्रकार उपर्युक्त दोष-स्थानों में से किसी भी दोष-स्थान का सेवन करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
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