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त्रयोदश उद्देशक - मंत्र-तंत्र-विद्यादि विषयक प्रायश्चित्त
जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा भूइकम्मं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ १८ ॥
जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ १९ ॥
जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणापसिणं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ २० ॥
जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा तीयं णिमित्तं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ॥ २१ ॥
जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा लक्खणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ॥ २२ ॥
जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा वंजणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ॥ २३ ॥
जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा सुमिणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ॥ २४ ॥
जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा विज्जं पउंजइ पउंजंतं वा साइज्जइ ॥ २५ ॥
जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा मंतं पउंजइ पउंजंतं वा साइज्जइ ॥ २६ ॥
जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा
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वा साइज्जइ ॥ २७॥
कठिन शब्दार्थ - कोउगकम्म कौतुक नजर आदि न लगने हेतु स्नानोपरांत औपचारिक कर्म ( तिलक आदि के रूप में), भूइकम्मं - भूतिकर्म - शरीर रक्षा हेतु राख आदि की अभिमंत्रित पोटली का प्रयोग, पसिणं - प्रश्न दर्पण में देवता का आह्वान कर बार-बार प्रश्न करना, तीयं मश, तिल आदि के आधार पर शुभाशुभ फल कहना,
शुभाशुभ फलपृच्छा करना, पसिणापसिणं - प्रश्न- प्रश्न अतीत, लक्खणं - लक्षण, वंजणं
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जोगं पउंजइ पउंजंतं
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