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द्वादश उद्देशक - मर्यादित क्षेत्र से बाहर आहार ले जाने का प्रायश्चित्त
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भावार्थ - ३३. जो भिक्षु दिन में गोबर प्रतिगृहीत कर (उसे रात में रखता हुआ दूसरे)दिन शरीर पर हुए घाव पर आलेपन-विलेपन करता है (पुन-पुनः लगाता है) या आलेपन-विलेपन करते हुए का अनुमोदन करता है। ____ ३४. जो भिक्षु दिन में गोबर प्रतिगृहीत कर उसे रात्रि में शरीर पर हुए घाव पर आलेपन विलेपन करता है अथवा आलेपन-विलेपन करते हुए का अनुमोदन करता है।
३५. जो भिक्षु रात्रि में गोबर प्रतिगृहीत कर दिन में शरीर के व्रण पर (उसका) आलेपन विलेपन करे या आलेपन-विलेपन करते हुए का अनुमोदन करे।
३६. जो भिक्षु रात्रि में गोबर प्रतिगृहीत कर रात्रि में शरीर के व्रण पर (उसका) आलेपन-विलेपन करे अथवा आलेपन-विलेपन करते हुए का अनुमोदन करे। . ३७. जो भिक्षु दिन में आलेपन द्रव्य प्रतिगृहीत कर (रात में रखता हुआ दूसरे) दिन शरीर के व्रण पर उनका आलेपन-विलेपन करे या आलेपन-विलेपन करते हुए का अनुमोदन करे। . ३८. जो भिक्षु दिन में आलेपन द्रव्य प्रतिगृहीत कर रात्रि में शरीर के व्रण पर उनका आलेपन-विलेपन करे अथवा आलेपन-विलेपन करते हुए का अनुमोदन करे।
३९. जो भिक्षु रात्रि में आलेपन द्रव्य प्रतिगृहीत कर दिन में शरीर के व्रण पर उनका आलेपन-विलेपन करे या आलेपन-विलेपन करते हुए का अनुमोदन करे।
४०. जो भिक्षु रात्रि में आलेपन द्रव्य प्रतिगृहीत कर रात्रि में शरीर के व्रण पर उनका आलेपन-विलेपन करे अथवा आलेपन-विलेपन करते हुए का अनुमोदन करे।
इस प्रकार उपर्युक्त अविहित कार्य करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। .
- विवेचन - इन सूत्रों में व्रण आदि पर गोबर तथा विलेपन द्रव्यों के प्रयोग की चर्चा है। गाय का गोबर आयुर्वेदिक दृष्टि से अनेक दोषों का परिहारक माना गया है। घाव के दोष निवारण एवं भरने में भी उसकी उपयोगिता है। इसके अतिरिक्त अनेक लेप-विलेप के पदार्थ हैं, जिनका व्रणों पर लेपन आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन्हें दिन में ही प्रतिगृहीत कर लेप-विलेप करने का आगमों में विधान है। दिन में लेकर रात में लगाना, रात में लेकर दिन में लगाना इत्यादि उपयोगात्मक पक्षों के निषेध क्रम का चतुभंगी के रूप में उल्लेख हुआ है।
गोबर को दिन में लेकर रात में लगाने से या रात में लेकर दिन में लगाने से जीवोत्पत्ति
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