________________
द्वादश उद्देशक - भौतिक आकर्षण-आसक्ति-विषयक प्रायश्चित्त
२७३.
भावार्थ - २६. जो भिक्षु राज्याभिषेक के स्थान, कथास्थान, मान-उन्मान प्रमाण के स्थान या कुशलतापूर्वक जोर से बजाए जाते हुए वाद्य - तंत्री-तल-ताल-त्रुटित तथा तदनुरूप नृत्य, गायन आदि को आंखों से देखने की इच्छा से मन में निश्चय करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
जे भिक्खू कट्टकम्माणि वा चित्तकम्माणि वा पोत्थकम्माणि वा (लेवकम्माणि वा) दंतकम्माणि वा मणिकम्माणि वा सेलकम्माणि वा गंथिमाणि वा वेढिमाणि वा पूरिमाणि वा संघाइमाणि वा पत्तच्छेज्जाणि वा विविहाणि वा वेहिमाणि वा चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ॥ २७॥
• जे भिक्खू डिम्बाणि वा डमराणि वा खाराणि वा वेराणि वा महाजुद्धाणि वा महासंगामाणि वा कलहाणि वा बोलाणि वा चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेतं वा साइजइ॥ २८॥ .. कठिन शब्दार्थ - कट्ठकम्माणि - काष्ठ कर्म - काष्ठ निर्मित प्रतिकृति आदि, चित्तकम्माणि - चित्रकर्म - चित्रांकित आकृतियाँ, पोत्यकम्माणि - पुस्तकर्माणि - वस्त्रखंडों पर अंकित, पुस्तकाकार में योजित चित्र आदि,(लेवकम्माणि - लेपकर्म - मृत्तिका आदि के लेप पर उकेरे हुए आकार विशेष) दंतकम्माणि - दन्तकर्म - हाथी दाँत से निर्मित वस्तुएँ, मणिकम्माणि - मणियों से निर्मित आभरण आदि, सेलकम्माणि - शैलकर्म - पाषाण निर्मित प्रतिमा आदि, गंथिमाणि - ग्रंथिम - गूंथ कर बनाई गई आकृति विशेष, वेढिमाणिवेष्टिम - वस्त्रादि को लपेट कर बनाई गई प्रतिकृति आदि, पूरिमाणि - पूरिम चावल आदि से पूरित - निर्मित स्वस्तिकादि, आकार विशेष, संघाइमाणि - संघातिम - अनेक वस्त्र-खंडों को योजित कर बनाई गई आकृति, पत्तच्छेज्जाणि - पत्रछेदक - कदली(केले)आदि के पत्तों को वेधित छेदित कर बनाए गए आकार विशेष, विविहाणि - विविध - अनेक प्रकार के, वेहिमाणि - वैधिकानि - पत्र, काष्ठ आदि पर उकेरे हुए चित्र आदि, डिम्बाणि - राष्ट्र विप्लव - विरोध आदि के स्थान, डमराणि - राष्ट्र के बाह्य-आभ्यंतर उपद्रव स्थान, खाराणि - पारस्परिक अन्तर्कलह के स्थान, वेराणि - वंश परंपरागत वैरोत्पन्न कलहपूर्ण स्थान, महाजुद्धाणि - घोर युद्ध (व्यूह रहित), महासंगामाणि - महासंग्राम - चतुरंगिणी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org