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निशीथ सूत्र
रोम युक्त चर्म में सूक्ष्म प्राणी उत्पन्न हो जाते हैं, प्रतिलेखन में असुविधा होती है, वर्षा ऋतु में लीलन - फूलन आदि उत्पन्न हो जाती है तथा उसे धूप में रखने से तद्गत सूक्ष्म जीवों की विराधना होती है अतः सरोम चर्म-उपयोग प्रायश्चित्त योग्य कहा गया है।
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यहाँ इतना और जानना चाहिए, यदि रोमयुक्त चर्म लाना पड़े तो यथासंभव कुम्हार या लुहार के यहाँ से लाना अधिक उपयुक्त है। उसे रातभर काम में लेकर प्रातः काल लौटा देना चाहिए | कुम्हार, लुहार द्वारा दिनभर उपयोग में लेते रहने से उसमें जीवोत्पत्ति होना कम संभावित है तथा एक रात्रि तक उसमें जीव उत्पन्न होने की भी संभावना कम रहती है।
गृहस्थ के वस्त्र से ढके पीछे पर बैठने का प्रायश्चित
जे भिक्खू तणपीढगं वा पलालपीढगं वा छगणपीढगं वा कट्टपीढगं वा वेत्तपीढगं वा परवत्थेणोच्छण्णं अहिट्ठेइ अहिžतं वा साइज्जइ ॥ ६ ॥
कठिन शब्दार्थ- पलाल - पराल (पुआल या भूसा), छगण शुष्क गोबर, परवत्थेणोच्छण्णं - परवस्त्रेणाच्छन्न - दूसरे (गृहस्थ ) के वस्त्र से आच्छन्न, अहिट्ठेइ - अधिष्ठित होता है - बैठता है ।
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भावार्थ ६. जो भिक्षु गृहस्थ के वस्त्र से ढके हुए तृण (घास-फूस), पुआल, शुष्क गोबर, काठ या बेंत से निर्मित पीढे पर बैठता है अथवा बैठने वाले का अनुमोदन करता है, उसे लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
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विवेचन इस सूत्र में 'अहिट्ठेइ - अधितिष्ठति' क्रिया पद प्रयुक्त हुआ । 'अधि' उपसर्ग और 'स्वा' धातु के उपयोग से अधितिष्ठति शब्द बनता है, जो वर्तमान बोधक लट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन का रूप है। इसका अर्थ अधिष्ठित होना - खड़े होना, सोना, बैठना, स्थित होना इत्यादि रूप में प्रयुक्त होता है। यहाँ पीढे की आसत्ति - संभोग या सहचरिता के कारण इसका अर्थ यहाँ बैठना संगत है।
सूत्र में वैसे पीढे पर बैठना दोषयुक्त कहा गया है जिस पर गृहस्थ का कपड़ा बिछा हुआ हो।
गृहस्थ वस्त्र रहित उपर्युक्तविध पीढे (कोई एक) को बैठने के प्रयोग में लेना निषिद्ध नहीं है। इतना अवश्य है, वह झुसिर दोषयुक्त नहीं होना चाहिए। झुसिर का तात्पर्य सघनता, रहितता अथवा परमाणु स्कन्धों का परस्पर सटा हुआ न होना है। क्योंकि वैसी स्थिति में जीवोत्पत्ति, जीव-विराधना आशंकित है।
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