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एकादश उद्देशक - रात में रखे पीपर आदि के सेवन का प्रायश्चित्त
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वस्त्रापहरणादि हो जाने पर) वैसी स्थिति में संवास की प्रायः विधि निशीथ सूत्र के ११ वें उद्देशक के इन सूत्रों में बताई है। ठाणांग सूत्र के पांचवें ठाणे में बताये हुए पाँच कारणों को छोड़ कर शेष कारणवश साधु साध्वी के साथ में रहने का गुरु चौमासी प्रायश्चित्त बताया है। चोरादि के द्वारा वस्त्रापहरण होने पर साधु साध्वी अचेलक हो सकते हैं। यही धारणा है। जिनकल्पी साधु एवं भिन्न समाचारी वाले साधु ऐसा अर्थ श्री घासीलालजी म. सा. की प्रति में मिलता है। परंतु निशीथ चूर्णि एवं भाष्य (जो कि १३००-१४०० वर्ष प्राचीन है उस) में उपरोक्त अर्थ ही मिलता है, एवं यही अर्थ संगत लगता है। (पुराने टबों में भी यही अर्थ मिलता है।) - रात में रखे. पीपर आदि के सेवन का प्रायश्चित्त
जे भिक्खू पारियासियं पिप्पलिं वा पिप्पलिंचुण्णं वा सिंगबेरं वा सिंगबेरचुण्णं वा बिलं वा लोणं उब्भियं वा लोणं आहारेइ आहारेंतं वा साइज्जइ॥ ९४॥ - कठिन शब्दार्थ - पारियासियं - पर्युषित - रात्रि में रखा हुआ, पिप्पलिं - पीपर, पिप्पलिंचुण्णं - पीपर का चूर्ण, सिंगबेरं - शुष्क अदरक - सोंठ, सिंगबेरचुण्णं - सोंठ का चूर्ण, बिलं वा लोणं - बिड़ संज्ञक लवण विशेष, उब्भिय वा लोणं - उद्भिद्लवण - अन्य प्रकार से शस्त्र परिणत नमक।
भावार्थ - ९४. जो भिक्षु रात में रखे हुए पीपर, पीपर का चूर्ण, सोंठ, सोंठ का चूर्ण, बिड़ नमक या उद्भिद् नमक का सेवन करता है - खाता है अथवा सेवन करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - भिक्षु के लिए रात्रि के समय किसी प्रकार के खाद्य-पेय आदि के सेवन का सर्वथा निषेध है। रात के समय इन्हें अपने पास रखना भी दोषपूर्ण है। _ इस सूत्र में पीपर, सोंठ और बिड़ एवं उद्भिद् नामक नमक रात में रखने और सेवन करने का प्रायश्चित्त कहा गया है। ...
यह प्रश्न उपस्थित होता है कि जब समग्र खाद्य, पेय आदि का सर्वथा निषेध है तब पृथक् रूप में इनके प्रायश्चित्त का प्रसंग क्यों आवश्यक माना गया? .
भोज्य एवं पेय पदार्थ भूख तथा प्यास को मिटाते हैं। यहाँ वर्णित (अचित्त) पीपर, सोंठ तथा नमक का भूख प्यास को मिटाने से संबंध नहीं है। ये पाचन - आस्वादन आदि से
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