________________
२२८
निशीथ सूत्र
उपर्युक्त सूत्र में जो 'गोलोमाई' पाठ आया है - उसका आशय - 'नीरोग एवं जवान गायों के पूंछ एवं सींग के पास के रोमों को छोड़कर शेष रोमों की जो ऊंचाई है वह गायों के शरीर पर दिखाई देती है - उन्हें यहां पर गोलोम शब्द से समझना चाहिए।' उनकी ऊंचाई सेन्टीमीटर के लगभग होने की संभावना है।
संवत्सरी के दिन चौविहार - चतुर्विध आहार त्याग रूप उपवास करना भी आवश्यक है। अहिंसा और अध्यात्म के प्रकर्ष की दृष्टि से इस दिवस का जैन परंपरा में बड़ा ऐतिहासिक महत्त्व है। यह दिवस हिंसाप्रधान जीवनचर्या से निकलकर अहिंसाप्रधान जीवन शैली स्वीकार करने के घटनाक्रम के स्मारक के रूप में प्रसिद्ध है।
अन्यतीर्थिक एवं गृहस्थ को पर्युषणकल्प सुनाने का प्रायश्चित्त
जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा पजोसवेइ पजोसवेंतं वा साइजइ॥ ४६॥
भावार्थ - ४६. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को पर्युषणाकल्प सुनाता है या उनके साथ सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करता - करवाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - पर्युषणाकल्प के अन्तर्गत साधु समाचारी का विशद्, विस्तृत वर्णन है।
पर्युषणा के दिन सायंकालीन प्रतिक्रमण के अनन्तर सभी भिक्षु 'पज्जोसवणाकल्प - पर्युषणाकल्प' अध्ययन का सामूहिक उच्चारण करें अथवा कोई एक विशिष्ट भिक्षु उच्चारण करे तथा अन्य सभी सामूहिक रूप में श्रवण करें। उसमें वर्णित साधु - समाचारी का प्रावृट्कालीन चातुर्मास में और अपने मासकल्पानुरूप विहरणकाल में सम्यक् अनुसरण करें, पालन करें। __यहाँ यह ज्ञातव्य है कि दशाश्रुतस्कन्ध की अष्टम दशा का नाम 'पज्जोसवणाकप्प' है। उसमें वर्षावास की साधु समाचारी का विस्तार से कथन है।
निशीथ चूर्णि में स्वाध्यायकाल का प्रतिलेखन कर इस अध्ययन का श्रवण कर समाप्ति का कायोत्सर्ग करना इत्यादि का इस संदर्भ में उल्लेख हुआ है।
उपर्युक्त सूत्र में पर्युषणकल्प अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को सुनाने का निषेध किया गया
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org