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निशीथ सूत्र
इसी तथ्य का समवायांग सूत्र के ७०वें समवाय में भी कथन किया गया है। समवायांग सूत्र की टीका में भी - संवत्सरी के लिए - 'भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी' को करने का वर्णन आया है। ___ निशीथ चूर्णि की गाथा सं. ३१४६ एवं ३१५३ में भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की पंचमी का पर्युषणकाल - सांवत्सरिक दिवस के रूप में प्रतिपादन हुआ है।
उपर्युक्त आगमों आदि के प्रमाणों से संवत्सरी (पर्युषण) के लिए-आगमोक्त निश्चित दिवस तो 'भादवा सुदी पञ्चमी' का ही था और है। उससे भिन्न किसी भी दिन पर्युषण करने पर प्रायश्चित्त आता है। यही इन दो सूत्रों का आशय समझना चाहिए। ..
आगमों में अनेक स्थलों पर अधिक मास को 'काल चूला' समझ कर नगण्य (गौण) किया गया है। अर्थात् - वह अधिक मास (प्रथम माह का शुक्लपक्ष व द्वितीय माह का कृष्ण पक्ष अर्थात् अमावस्या से अमावस्या तक) धार्मिक कार्यों एवं सांसारिक मांगलिक कार्यों में उपयोगी नहीं होता है। आगमों में सर्वत्र इसी पद्धति का अनुसरण किया गया है। ऐसा करने से लौकिक (पञ्चांगों) एवं लोकोत्तर (आगमिक) गणित दोनों का पूर्ण रूप से सामंजस्य हो जाने से किसी भी प्रकार के विरोध को अवकाश ही नहीं रहता है। ___ लौकिक पञ्चागों में अधिक मास को ‘मल मास, पुरुषोत्तम मास' आदि कह कर उसे मंगल कार्यों में अनुपयोगी बताया है। ___अतः आगमकारों के वर्णन की शैली को देखते हुए आगमकारों के द्वारा महिनों आदि को गिनने की पद्धति सुस्पष्ट हो जाती है। 'संवत्सरी' पर्व सम्बन्धी आगमिक सभी वर्णनों का पूर्वापर समायोजन होने पर - संवत्सरी (पर्युषण) भादवा सुदी पञ्चमी को ही करने का आगमकारों को मान्य है - यह सुनिश्चित हो जाता है। अनाग्रह बुद्धि से तटस्थता पूर्वक इस प्रकार आगमिक विधानों का पर्यालोचन करने पर यह बात अच्छी तरह से समझ में आ सकती है।
संघ से प्रकाशित 'समवायाङ्ग-सूत्र के ७० वें समवाय के विवेचन में एवं समर्थ समाधान भाग २ (प्रथमावृत्ति) के पृष्ठ ३५ वें से ४६ वें तक में - संवत्सरी सम्बन्धी विस्तृत विवेचन किया गया है।' जिज्ञासुओं को वे स्थल द्रष्टव्य है।
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