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निशीथ सूत्र
अननकाय संयुक्त आहार विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू अणंतकायसंजुत्तं आहारं आहारेइ आहारेंतं वा साइजड़॥५॥ कठिन शब्दार्थ - अणंतकायसंजुत्तं - अनंतकाय संयुक्त - मिश्रित।
भावार्थ - ५. जो भिक्षु अनन्तकाय संयुक्त आहार करता है या आहार करते हुए का .. अनुमोदन करता है, उसे गुरु. चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - भिक्षु अपने अहिंसा महाव्रत, विशुद्ध भिक्षाचर्या, निरवद्य आहार के कारण सचित्त अनंतकाय का जानबूझकर कभी भी सेवन नहीं करता, किन्तु किसी अचित्त शुद्ध आहार में सचित्त कन्दमूल आदि के टुकड़े मिले हुए हों और भिक्षु को उसकी जानकारी न हो तथा वह आहार ले लिया जाए, सेवन किया जाए तो उसे 'अनन्तकाय संयुक्त आहार' कहा जाता है।
एक बात यहाँ और ज्ञातव्य है, किसी अचित्त आहार में लीलन-फूलन आ जाए, यह न जानता हुआ भिक्षु उसे ले ले तथा सेवन करने तक जानकारी न रहे, वैसा आहार अनन्त संयुक्त आहार के अन्तर्गत परिगणित किया जाता है। इस सूत्र में प्रतिपादित दोष इससे संबद्ध है।
आधाकर्म आहार आदि ग्रहण विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू आहाकम्मं भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥६॥
कठिन शब्दार्थ - आहाकम्मं - आधाकर्म - औद्देशिक आहार - साधुओं को उद्दिष्ट कर तैयार किया हुआ।
भावार्थ - ६. जो भिक्षु आधाकर्मी आहार का भोग - सेवन करता है या सेवन करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - इस सूत्र में प्रयुक्त 'आहाकम्म - आधाकर्म' पद की शाब्दिक व्युत्पत्ति एवं विग्रह इस प्रकार है :
___ "आधानम् - आधा, चेतसि साधून् आधाय - मनसि निधाय, तन्निमित्त 'षड्जीवनिकायोपमर्दनादिना कर्म - भक्तादि पाक क्रिया क्रियते, तद्योगाद् भक्ताद्यपि आधाकर्म" ___ अर्थात् आधा का अर्थ आधान है। चित्त में साधु को आधानित - उद्दिष्ट कर. अथवा मन में निहित कर, छह जीवनिकाय के उपमर्दन या हिंसापूर्वक जो भोजन पकाने आदि की
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