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दसमो उद्देसओ - दशम उद्देशक .. आचार्य आदि के प्रति अविनय-आशातनादि का प्रायश्चित्त जे भिक्खू भदंतं आगाढं वयइ वयंतं वा साइजइ॥१॥ जे भिक्खू भदंतं फरुसं वयइ वयंतं वा साइज्जइ॥२॥ जे भिक्खू भदंतं आगाढं फरुसं वयइ वयंतं वा साइज्जइ॥३॥
जे भिक्खू भदंतं अण्णयरीए अच्चासायणाए अच्चासाएइ अच्चासाएंतं वा साइजइ॥ ४॥ .. कठिन शब्दार्थ - भदंतं - आचार्य भगवन्त को, आगाढं - रोष युक्त - अति कठोर, फरुसं - परुष - रूक्ष, कर्कश या स्नेह रहित, अच्चासायणाए - अतिआशातना - अति असंतोषजनक, अप्रिय, उपेक्षापूर्ण व्यवहार, अच्चासाएइ - अत्यन्त आशादित करता है - क्लेश पहुंचाता है।
भावार्थ - १. जो भिक्षु आचार्य भगवन्त (आदि) को रोषयुक्त - अति कठोर वचन बोलता है या बोलते हुए का अनुमोदन करता है। ___२. जो भिक्षु आचार्य भगवन्त (आदि) को परुष - स्नेह रहित, कर्कश वचन बोलता है . या बोलते हुए का अनुमोदन करता है। _____३. जो भिक्षु आचार्य भगवन्त (आदि) को रोष सहित, स्नेह रहित - कठोर-रूक्ष वचन बोलता है या बोलते हुए का अनुमोदन करता है।
४. जो भिक्षु आचार्य भगवन्त (आदि) को किसी प्रकार की अति आशातना से - अत्यधिक मनः प्रतिकूल, अवहेलना युक्त व्यवहार से क्लेश पहुंचाता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
ऐसा करने वाले भिक्षु को गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - मानव जीवन में वाणी का अत्यन्त महत्त्व है। वाणी का सरल, सौम्य, मधुर, श्रद्धाविनय युक्त एवं सत्यानुप्राणित होना उत्तम प्रशस्त मानवता का सूचक है। .
वाणी कठोर, कर्कश, रूक्ष नहीं होनी चाहिए, क्योंकि जिसके प्रति वह बोली जाती है, उसके मन में उससे पीड़ा होती है। किसी को पीड़ा पहुँचाना वचनमूलक हिंसा है।
करता है।
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