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निशीथ सूत्र
इस प्रकार उपर्युक्त अविहित कार्य करने वाले भिक्षु को गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - काम-वासना के उद्दीपन तथा संवर्धन में स्त्री एवं पुरुष के बीच खाद्य-पेय आदि सामग्री के आदान-प्रदान का बड़ा प्रभाव होता है। उससे वे एक-दूसरे के अधिक निकट आते हैं, मैथुनोद्वेलित होते हैं। ___ उपर्युक्त सूत्रों में इसी प्रकार की कामुकता प्रेरित प्रवृत्ति का उल्लेख है। पाप-पंकिलता के कारण वैसी प्रवृत्ति परित्याग योग्य एवं प्रायश्चित्त योग्य है, भिक्षु इस तथ्य को सदैव हृदयंगम किए रहे।
सूत्रार्थ वाचना आदान-प्रदान-विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए सज्झायं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ॥ ९२॥
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए सज्झायं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ ॥ ९३॥
भावार्थ - ९२. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन की दुष्कामना से उसे स्वाध्याय - सूत्रार्थ की वाचना देता है अथवा वाचना देते हुए का अनुमोदन करता है।
९३. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन की दुष्कामना से उससे स्वाध्याय - सूत्रार्थ की वाचना ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है।
ऐसा करने वाले भिक्षु को गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - भिक्षु आगम सूत्रों के मूल पाठ की वाचना एवं अर्थ की वाचना तथा सूत्रार्थ (तदुभय) की वाचना गृहस्थों को भी दे सकता है अर्थात् सूत्रों का अर्थ विश्लेषण - भावार्थ, विवेचन गृहस्थों को भी ज्ञापित कर सकता है, समझा सकता है। यहाँ वाचना देना और लेना इसी अर्थ में गृहीत है।
सत्रार्थ - तत्त्व विवेचन, तत्त्वानुशीलन एवं तत्त्वानुचिन्तन परम पवित्र कार्य है, कर्म निर्जरा का हेतु है। किन्तु बड़े ही दुःखद आश्चर्य का विषय है कि ऐसे पावन कृत्य का भी कामोगवश व्यक्ति मैथुन जैसे परित्याज्य कार्य में प्रेरक के रूप में उपयोग करने में उद्यत हो जाता है। कामान्धता व्यक्ति के विवेक को किस प्रकार उन्मूलित कर डालती है, यह उसका स्पात उदाहरण है। भिक्षु इससे अपने को सदैव परिरक्षित किए रहे।
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