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सप्तम उद्देशक - भक्त-पान-प्रतिगृहादि आदान-प्रदान-विषयक प्रायश्चित्त
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यहाँ प्रयुक्त विच्छेदन शब्द कामी पुरुष द्वारा स्त्री के देह पर नख आदि द्वारा बनाए गए खरोंचों के अर्थ में है, जो काम-कौतुक का एक रूप है। वात्स्यायन के कामसूत्र में आलिंगन, परिष्वजन, चुम्बन, परिच्छेदन का कामांगों के रूप में विस्तृत विवेचन है। कामकर्दम में लिप्तप्रलिप्त पुरुष ऐसा करने में बड़ा सुख अनुभव करते हैं। कामवशगा नारी भी इन्हें उल्लासप्रद मानती है, जो प्रबल मोह प्रसूत है, अशुभ कर्मबंध का अनन्य हेतु है। साधु कामकेलिगत कौतुक प्रधान प्रवृत्तियों में पड़कर कभी भी अपने संयम रत्न को धूमिल, दूषित न बनाए। इसलिए इनको प्रायश्चित्त योग्य बतलाते हुए भिक्षुवृन्द को इनसे सर्वथा अतीत, अस्पृष्ट एवं अलग्न रहने की प्रेरणा प्रदान की गई है।
भक्त-पान-प्रतिगृहादि आदान-प्रदान-विषयक प्रायश्चित्त __जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देइ देंतं वा साइजइ ॥८८॥ - जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ॥ ८९॥
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देइ देंतं वा साइजइ॥ ९०॥
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ॥ ९१॥
- भावार्थ - ८८.जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के दुर्विचार से उसे अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार देता है अथवा देते हुए का अनुमोदन करता है।
८९. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के दुर्विचार से उससे अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है।
९०. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के दुर्विचार से उसे वस्त्र, पात्र, कंबल या पादपोंछन देता है अथवा देते हुए का अनुमोदन करता है।
' ९१. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के दुर्विचार से उससे वस्त्र, पात्र, कंबल या पादपोंछन ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है।
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