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निशीथ सूत्र
दगमट्टियमक्कडासंताणगंसि णिसीयावेज वा तुयट्टावेज वा णिसीयावेंतं वा तुयथावेंतं वा साइज्जइ॥ ७७॥ __ कठिन शब्दार्थ - अणंतरहियाए - अनंतरहितायां - शीतवातादि शास्त्रों द्वारा अनुपहतसचित्त, पुढवीए - भूमि पर, मट्टियाकडाए - सचित्त मृत्तिकामय, चित्तमंताए - स्वभावतः सचित्त - खदान रूप, चित्तमंताए सिलाए - खान से सद्यः निष्कासित सचित्त शिला, चित्तमंताए लेलूए - खान से तत्काल निकाला गया मिट्टी का ढेला, कोलावासंसि - घुणों के आवास से युक्त, दारुए जीवपइट्ठिए - जीव युक्त काष्ठ में, सहरिए - हरित - हरियाली युक्त, सओसे - ओस (नमी) युक्त, सउदए - स-उदक - जल सहित, उत्तिंग - कीट विशेष युक्त, भूमि में गोलाकार बिल बनाने वाले गर्दभ के मुख के आकार से युक्त कीट विशेष, पणग - पनकं - लीलन-फूलण आदि जीव, मक्कडासंताणगंसि - मकड़ी के जाले पर। ___ भावार्थ - ७०. जो भिक्षु मैथुन सेवन की इच्छा से स्त्री को सचित्त भूमि (सचित्त संलग्न भूमि) पर बिठाता है या करवट लिवाता है-सुलाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ___७१. जो भिक्षु मैथुन सेवन की इच्छा से स्त्री को (सचित्त जल से) स्निग्घ - भीगी हुई या चिकनी भूमि पर बिठाता है या सुलाता है अथवा बिठाते-सुलाते हुए का अनुमोदन करता है।
७२. जो भिक्षु मैथुन सेवन की इच्छा से स्त्री को सचित्त रजयुक्त भूमि पर बिठाता है या सुलाता है अथवा बिठाते-सुलाते हुए का अनुमोदन करता है।
७३. जो भिक्षु मैथुन सेवन की इच्छा से स्त्री को सचित्त मृत्तिकामय भूमि पर बिठाता है या सुलाता है अथवा बिठाते-सुलाते हुए का अनुमोदन करता है।
७४. जो भिक्षु मैथुन सेवन की इच्छा से स्त्री को स्वभावतः सचित्त - खदान रूप भूमि पर बिठाता है या सुलाता है अथवा बिठाते-सुलाते हुए का अनुमोदन करता है। ___७५. जो भिक्षु मैथुन सेवन की इच्छा से स्त्री को खान से सद्यः निष्कासित सचित्त शिला पर बिठाता है या सुलाता है अथवा बिठाते-सुलाते हुए का अनुमोदन करता है।
७६. जो भिक्षु मैथुन सेवन की इच्छा से स्त्री को खान से तत्काल निकाले गए मिट्टी के ढेले पर बिठाता है या सुलाता है अथवा बिठाते-सुलाते हुए का अनुमोदन करता है। ____७७. जो भिक्षु मैथुन सेवन की इच्छा से स्त्री को घुणों के आवास से युक्त, जीव प्रतिष्ठित - अन्यान्य जीव युक्त काष्ठ निर्मित पीठ, फलक आदि पर, चींटी आदि के अण्डों
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