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निशीथ सूत्र
नारी अंग संचालन विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए (क्खिं )क्खंसि वा ऊरुसि वा उयरंसि वा थणंसि वा गहाय संचालेइ संचालेंतं वा साइजइ॥१३॥ ... कठिन शब्दार्थ - अक्खिं )क्खंसि - अक्ष - योनिस्थान अथवा शरीर की इन्द्रियों में से किसी को, ऊरुंसि - उर - हृदय प्रदेश को, उयरंसि - उदर - कुक्षि प्रदेश या पेट को, थणंसि - स्तन को, गहाय - गृहीत कर - पकड़कर, संचालेइ - संचालित करता है - सहलाता है, हिलाता है। ...
भावार्थ - १३. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के लक्ष्य से उसके किसी अंग, हृदय प्रदेश, उदर या स्तन को गृहीत कर संचालित करता है, सहलाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। ___विवेचन - इस सूत्र में जिन कायिक कामचेष्टाओं का वर्णन हुआ है, वे सर्वथा गर्हित हैं, घृणास्पद हैं। ब्रह्मचारी के लिए तो वैसा करना तो दूर रहा, सोचना तक निषिद्ध है।
दुःस्सह काम वेग से सन्तप्त, उत्पीड़ित व्यक्ति वासनाजनित स्पर्श-सुख का अनुभव करने हेतु नारी को अपनी ओर आकृष्ट एवं कामोद्यत बनाने हेतु ऐसी कुचेष्टाएं करता है। इन अति जघन्य लज्जास्पद, निन्दनीय कार्यों में साधु पड़ कर अपने संयम रत्न को न गंवा दे, पतन के गर्त में न गिर जाए, इस सूत्र में इन कलुषित कृत्यों को प्रायश्चित्त योग्य बतला कर उस ओर से सदैव पराङ्मुख, विमुख, सर्वथा पृथक् रहने की प्रेरणा प्रदान की गई है।
कामुकतावश परस्पर पाद-आमर्जनादि विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णमण्णस्स पाए आमज्जेज वा पमज्जेज वा आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा साइजइ एवं तइयउद्देसगगमेण णेयव्वं जाव जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए गामाणुगाम दूइजमाणे अण्णमण्णस्स सीसवारियं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ॥१४-६९॥
भावार्थ - १४-६९. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से आपस में एक दूसरे के पाँव का एक बार या अनेक बार घर्षण करता है या घर्षण करने वाले का अनुमोदन करता है। इस प्रकार तीसरे उद्देशक के (सूत्र १६ से ७१) ५६ सूत्रों के आलापक के समान जान लेना चाहिए यावत् जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से ग्रामानुग्राम विहार
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