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. षष्ठ उद्देशक - अब्रह्म के संकल्प से किए जाने वाले कृत्यों का प्रायश्चित्त १४३
नासिकादि छिद्र विशेष या अपानद्वार के अग्रभाग को भिलावा से उत्पादित कर उन्हें अचित्त शीतल या उष्ण जल से धोकर, मल्हम लगाकर, उन पर तेल, घृत आदि मल कर अग्नि में डाले हुए सुगन्धित पदार्थ निष्पन्न धूप से निकलते हुए धूएँ द्वारा एक बार या अनेक बार वासित करे, धूमित करे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे। ... इन दोष स्थानों में से किसी भी दोष-स्थान का सेवन करने वाले भिक्षु को गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए कसिणाई वत्थाई धरेइ धरतं वा साइज्जइ॥ १९॥
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अहयाई वत्थाई धरेइ साइजइ॥ २०॥
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए धोवरत्ताई वत्थाई धरेइ धरतं वा साइजइ॥ २१॥ .
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए चित्ताई वत्थाई धरेइ धरेतं वा साइज्जइ॥ २२॥
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए विचित्ताई वत्थाइं धरेइ धरतं वा साइजइ॥ २३॥
कठिन शब्दार्थ - अहयाई - अहतानि - नवीन, धोवरत्ताइं - उज्ज्वल धुले हुए।
भावार्थ - १९. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से सम्पूर्ण - अखण्डित वस्त्र धारण करता हैं या धारण करते हुए का अनुमोदन करता है। .
. २०. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से नवीन वस्त्र धारण करता है या धारण करते हुए का अनुमोदन करता है।
२१. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करता हैं या धारण करते हुए का अनुमोदन करता है।
२२. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से एक रंग से रंजित वस्त्र को धारण करता है या धारण करते हुए का अनुमोदन करता है। ___ २३. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से विविध रंगों से रंजित वस्त्र धारण करता है या धारण करते हुए का अनुमोदन करता है।
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