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निशीथ सूत्र
उच्छोलेत्ता पधोएत्ता अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा आलिंपेंतं वा विलितं वा साइज्जइ॥ १६॥
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए पिटुंतं वा सोयंतं वा पोसतं वा उच्छोलेत्ता पधोएत्ता आलिंपेत्ता विलिंपेत्ता तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा साइज्जइ॥ १७॥ ... जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए पिटुतं वा सोयंतं वा पोसंतं वा उच्छोलेत्ता पधोएत्ता आलिंपेत्ता विलिंपेत्ता अब्भंगेत्ता मक्खेत्ता अण्णयरेणं धूवणजाएणं धूवेज वा पधूवेज वा धूवेंतं वा पधूवेंतं वा साइजइ॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - पिटुंतं - अपानद्वार के अग्रभाग पर, सोयंतं - स्रोतांत - शरीर के नाभि, कान, नाक आदि छिद्र विशेष के अग्रभाग पर, पोसंतं - स्त्री जननांग के अग्रभाग पर, भ(ल्लि)ल्लायएण - भिलावा, उप्पाएइ - उत्पादित करता है।
भावार्थ - १४. जो भिक्षु मैथुन सेवन के संकल्प से किसी स्त्री के योनिद्वार, नाभिकर्णनासिकादि छिद्र विशेष या अपान द्वार (गुदा) के अग्रभाग को भल्लातक से उत्पन्न करता है, उन पर उसे लगाता है (शोथ युक्त बनाता है) या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
१५. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री के योनिद्वार, नाभि-कर्णनासिकादि छिद्र विशेष या अपान द्वार के अग्रभाग को भल्लातक से उत्पन्न कर उन्हें अचित्त शीतल या उष्ण जल से एक बार या अनेक बार धोए अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे।
१६. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के भाव से स्त्री के योनिद्वार, नाभि-कर्णनासिकादि छिद्र विशेष या अपानद्वार के अग्रभाग को भिलावा से उत्पादित कर उन्हें अचित्त शीतल या उष्ण जल से धोकर उन पर औषधि निर्मित किसी प्रकार का लेप या मल्हम एक बार या अनेक बार लगाए अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे।
१७. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के भाव से स्त्री के योनिद्वार, नाभि-कर्मनासिकादि छिद्र विशेष या अपानद्वार के अग्रभाग को भिलावा से उत्पादित कर उन्हें अचित्त शीतल या उष्ण जल से धोकर, मल्हम लगाकर उन पर तेल, घृत, चिकने पदार्थ या मक्खन एक बार या अनेक बार मले - मसले अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे।
१८. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के भाव से स्त्री के योनिद्वार, नाभि-कर्ण
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