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निशीथ सूत्र
इस सूत्र में प्रयुक्त 'मुहं विप्फालियः पद इसी भाव का द्योतक है। मुँह को विस्फारित कर - फाड़-फाड़ कर, ठह-ठहाकर हँसना एक सामान्य व्यक्ति के लिए भी अशोभाजनक है, फिर साधु की तो बात ही क्या? यह मानसिक चंचलता एवं अस्थिरता का द्योतक है। ____ साधु कुतूहलवश, मजाकवश, अमर्यादित मनोरंजनवश कभी भी ऐसा न करे। ऐसा करना साधु के त्याग-तपोमय व्यक्तित्व को दूषित करता है।
आचारांग सूत्र में कहा गया है कि साधु हास्य के दोष को समझें अर्थात् उसे दोष युक्त जानता हुआ कभी हास-परिहास में अनुरत न हो ।.
.. पार्श्वस्थ आदि को संघाटक आदान-प्रदान करने का प्रायश्चित्त .. जे भिक्खू पासत्थस्स संघाडयं देइ देंतं वा साइजइ॥ २८॥ जे भिक्खू पासत्थस्स संघाडयं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ॥ २९॥ जे भिक्खू ओसण्णस्स संघाडयं देइ देंतं वा साइजइ॥३०॥ जे भिक्खू ओसण्णस्स संघाडयं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ॥ ३१॥ जे भिक्खू कुसीलस्स संघाडयं देइ देंतं वा साइजइ॥ ३२॥ जे भिक्खू कुसीलस्स संघाडयं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ।। ३३॥ जे भिक्खू णितियस्स संघाडयं देइ देंतं वा साइजइ॥ ३४॥ जे भिक्खू णितियस्स संघाडयं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ॥ ३५॥ जे भिक्खू संसत्तस्स संघाडयं देइ बैंस वा साइजइ ॥ ३६॥ . जे भिक्खू संसत्तस्स संघाडयं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइनइ ॥ ३७॥
कठिन शब्दार्थ - पासत्थस्स - पार्श्वस्थ, संघाडयं - संघाटक, पडिच्छइ - स्वीकार करता है - ग्रहण करता है, ओसण्णस्स - अवसन्न - संयम में अवसाद युक्त, कुसीलस्सकुशील - कुत्सित शील आचार युक्त, णितियस्स - नित्यक - निरन्तर एक क्षेत्रवासी, संसलस- संसक्त - आसक्ति युक्त।
भावार्थ - २८. जो भिक्षु पार्श्वस्थ को - अपनी गण परंपरा से भिन्न, अन्यगण में
*आचारांग सूत्र श्रुतस्कन्ध - २, अध्ययन - १६ ।
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