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तृतीय उद्देशक - सन कपास आदि से वशीकरण सूत्र बनाने का प्रायश्चित्त
कठिन शब्दार्थ - सीसदुवारियं - शीर्षद्वारिका वस्त्र से सिर को ढकना । भावार्थ - ७१. जो भिक्षु ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ अपने मस्तक को ढकता है अथवा ढकते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है ।
विवेचन सामान्यतः साधु अपना मस्तक खुला रखते हैं, साध्वियाँ अपने मस्तक को वस्त्र से ढकती हैं, सिर पर वस्त्र ओढती हैं, क्योंकि वैसा करना नारी-परिवेश के अनुरूप है।. साधु यदि वैसा करे तो वह लिंग विपर्यास है, पुरुष - परिवेश के विपरीत है । इसलिए विहार करते समय, भिक्षा आदि हेतु जाते समय साधु अपने मस्तक को आवरित, अवगुण्ठित न करे ।
यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि साध्वी अपने मस्तक को वस्त्र द्वारा आवरित, अवगुण्ठित किए बिना कहीं न जाए। क्योंकि मस्तक को वस्त्र से ढके बिना जाना नारी-परिवेश का विपर्यास है।
. वेश-भूषा, वस्त्र धारण आदि लैंगिक-परिवेश के अनुरूप हो, यह वांछित है।
सन कपास आदि से वशीकरण सूत्र बनाने का प्रायश्चित्त
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जे भिक्खू सणकप्पासाओ वा उण्णकप्पासाओ वा पोण्डकप्पासाओ वा अमिलकप्पासाओ वा वसीकरणसोत्तियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ७२ ॥ कठिन शब्दार्थ सणकप्पासाओ - जूट, सन आदि की रूई से, उण्णकप्पासाओ ऊन से, पोण्डकप्पासाओ कपास के डोडों से निकलने वाली रूई से, अमिलकप्पासाओ - सेमल, आक आदि की कपास से, वसीकरणसोत्तियं वशीकरण सूत्र - किसी को वश में करने का डोरा ।
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भावार्थ - ७२. जो भिक्षु जूट, सन आदि की रूई से, ऊन से, कपास, सेमल, आक आदि की रूई से वशीकरण सूत्र - किसी को वश में करने का मन्त्राभिषिक्त डोरा बनाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - समस्त - कर्म-क्षयपूर्वक मोक्ष प्राप्ति का महान् लक्ष्य लिए साधना- निरत भिक्षु मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र आदि का कदापि प्रयोग नहीं करता। वैसा करना एक साधु के लिए सर्वथा परिय है, प्रायश्चित्त योग्य है।
इस सूत्र में इसी आशय को लिए हुए तत्त्व - निरूपण किया गया है। कोई साधु उत्तम भोजन, वस्त्र आदि के लोभवश किसी स्वार्थान्ध व्यक्ति द्वारा प्रार्थित प्रेरित होकर सूत्रोक्त
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