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तृतीय अध्ययन - भगवान् का समाधान
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भावार्थ - तदनन्तर भगवान् गौतमस्वामी के हृदय में उस पुरुष को देख कर यह संकल्प उत्पन्न हुआ यावत् पूर्वानुसार वे नगर से बाहर निकले तथा भगवान् के पास आकर निवेदन किया- 'हे भगवन्! मैं आपकी आज्ञा लेकर नगर में गया, वहां मैंने एक पुरुष को देखा यावत् हे भगवन्! वह पुरुष पूर्वभव में कौन था? जो कि यावत् समय व्यतीत कर रहा है - कर्मों का फल पा रहा है?'
विवेचन .- अज्ञानी जीव कर्म बांधते समय तो कुछ नहीं सोचता किंतु जिस समय उन कर्मों का फल भोगना पड़ता है उस समय वह अपने किये पर पश्चात्ताप करता है, रोता है, चिल्लाता है पर अब कुछ नहीं होता, इस प्रकार के विचारों में निमग्न गौतमस्वामी पुरिमताल नगर से निकले और ईर्यासमिति. पूर्वक गमन करते हुए भगवान् महावीर स्वामी के पास पहुंचे, पहुंच कर वंदना नमस्कार किया और सारा वृत्तांत कह सुनाया तथा विनयपूर्वक उस वध्य व्यक्ति के पूर्व भव संबंधी वृत्तांत को जानने की अभिलाषा प्रकट की। गौतमस्वामी के प्रश्न के उत्तर में प्रभु फरमाते हैं -
भगवान् का समाधान ___ एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पुरिमताले णामं णयरे होत्था रिद्ध०। तत्थ णं पुरिमताले णयरे उदिओदिए णामं राया होत्था महया०। तत्थ णं पुरिमताले णिण्णए णामं अंडयवाणियए होत्था अड्ढे जाव अपरिभूए अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे, तस्स णं णिण्णयस्स अंडयवाणियस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लिं कुद्दालियाओ य पत्थियपिडए य गिण्हंति गिण्हित्ता पुरिमतालस्स णयरस्स परिपेरंतेसु बहवे काइअंडए य घूइअंडए य पारेवइअंडए य टिट्टिभिअंडए य खगि अंडए य मंयूरिअंडए य कुक्कुडिअंडए य अण्णेसिं च बहूणं जलयर-थलयर-खहयरमाईणं अंडाई गेण्हंति गेण्हित्ता पत्थियपिडगाइं भरेंति, भरेत्ता जेणेव णिण्णए अंडवाणियए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता णिण्णयस्स अंडवाणियस्स उवणेति ॥६६॥
— कठिन शब्दार्थ - णिण्णए - निर्णय, अंडयवाणियए - अण्डवाणिज-अण्डों का व्यापारी, दिण्णभइभत्तवेयणा - दत्तभृतिभक्तवेतन-जिन्हें वेतन रूप में पैसे आदि तथा घृत धान्य आदि
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