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तृतीय अध्ययन - विजय नामक चोर सेनापति का वर्णन
६६ ........................................................... संणिविट्ठा वंसीकलंक-पागारपरिक्खित्ता छिण्णसेल-विसमप्पवाय-फरिहोवगूढा अन्भिंतरपाणीया-सुदुल्लभजलपेरंता अणेगखंडी विदियजणदिण्ण-णिग्गमप्पवेसा सुबहुयस्सवि कुवियस्स जणस्स दुप्पहंसा यावि होत्था।
तत्थ णं सालाडवीए चोरपल्लीए विजय णामं चोरसेणावई परिवसइ अहम्मिए जाव लोहियपाणी बहुणयरणिग्गयजसे सूरे दढप्पहारे साहसिए सद्दवेही असिलहि-पढममल्ले, से णं तत्थ सालाडवीए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसयाणं आहेवच्चं जाव विहरइ॥६४॥
कठिन शब्दार्थ - देसप्पंते - देश प्रान्त-सीमा पर, अडवी संठिया - अटवी में स्थित, सालाडवी - शालाटवी, चोरपल्ली - चोर पल्ली-चोरों के निवास का गुप्त स्थान, विसमगिरिकंदर-कोलंबसंणिविट्ठा - पर्वत की विषम (भयानक) कंदरा (गुफा) के प्रांतभाग (किनारे पर) संस्थापित, वंसीकलंकपागार परिक्खित्ता - बांस की जाली की बनी हुई प्राकार (कोट) से परिक्षिप्त-घिरी हुई, छिण्णसेल-विसमप्पवाय-फरिहोवगूढा - छिन्न (विभक्त-अपने अवयवों से कटे हुए, शैल (पर्वत) के विषम (ऊंचे नीचे) प्रपात, परिखा (खाई) युक्त, अन्भिंतरपाणीया-सुदुल्लभजलपेरंता - आभ्यंतर जल से युक्त तथा बाहर दूर-दूर तक जल अत्यंत दुर्लभ, अणेगखंडी - अनेकों गुप्त द्वारों से युक्त, विदियजणदिण्णणिग्गमप्पवेसा - ज्ञात मनुष्य ही निर्गम और प्रवेश कर सकते थे, सुबहुयस्स वि - अनेकानेक, कुवियस्स - मोष व्यावर्तक-चोरों द्वारा चुराई हुई वस्तु को वापिस लाने के लिए उद्यत रहने वाले, दुप्पहंसादुष्प्रध्वस्या-नाश नं किया जा सके, ऐसी, लोहियपाणी - लोहितपाणि-उसके हाथ खून से लाल रहते थे, बहुणगरणिग्गयजसे- जिसकी प्रसिद्धि अनेक नगरों में हो रही थी, सूरे - शूरवीर, दढप्पहारे - दृढ़ता से प्रहार करने वाला, सहवेही - शब्द भेदी-शब्द को लक्ष्य में रख कर बाण चलाने वाला, असि-लट्ठि-पढममल्ले - तलवार और लाठी का प्रथम मल्ल-प्रधान योद्धा।
भावार्थ - उस पुरिमताल नगर के ईशानकोण में सीमान्त पर स्थित अटवी में शालाटवी नामक एक चोरपल्ली थी, जो पर्वतीय भयानक गुफाओं के किनारे पर स्थित थी, बांस की बनी हुई बाड़ रूप प्राकार से घेरी हुई ती। विभक्त-अपने अवयवों से कटे हुए पर्वत के विषम-ऊंचे नीचे प्रपात-गर्त, तद्प परिखा-खाई वाली थी। उस के भीतर पानी का पर्याप्त प्रबंध था और उसके बाहर दूर दूर तक पानी नहीं मिलता था। उसके अन्दर अनेकानेक खण्डी (गुप्तद्वार-चोर
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