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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ..........................................................
भावार्थ - उस बालक को माता पिता नपुंसक करके नपुंसक कर्म सिखलावेंगे। बारह दिन व्यतीत हो जाने पर उसके माता पिता उसका 'प्रियसेन' नामकरण करेंगे। बालभाव का त्याग कर युवावस्था को प्राप्त विशेष ज्ञान रखने वाला एवं बुद्धि आदि की परिपक्व अवस्था को उपलब्ध करने वाला वह प्रियसेन नपुंसक रूप, यौवन और लावण्य से उत्कृष्ट और उत्तम शरीर वाला होगा। ___ तत्पश्चात् वह प्रियसेन नपुंसक इन्द्रपुर नगर के राजा, ईश्वर यावत् अन्य मनुष्यों को अनेकविध विद्या प्रयोगों से, मंत्रों द्वारा मंत्रित चूर्ण-भस्म आदि के योग से हृदय को शून्य कर देने वाले, ' अदृश्य कर देने वाले, वश में कर देने वाले तथा पराधीन-परवश कर देने वाले प्रयोगों से वश में करके मनुष्य संबंधी उदार-प्रधान भोगों को भोगता हुआ समय व्यतीत करने लगा। ___तए णं से पियसेणे णपुंसए एयकम्मे० सुबहुं पावकम्मं समजिणित्ता एक्कवीसं वाससयं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववजिहिइ, तओ सिरिसिवेसु संसारो तहेव जहा पढमो जाव पुढवी०.. से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए णयरीए महिसत्ताए पच्चायाहिइ, से णं तत्थ अण्णया कयाइ गोहिल्लएहिं जीवियाओ. ववरोविए समाणे तत्थेव चंपाए णयरीए सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ, से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं.......अणगारे सोहम्मे कप्पे जहा पढमे जाव अंतं काहिए। णिक्खेवो॥१२॥
॥ बीयं अज्झयणं समत्तं॥ कठिन शब्दार्थ - एयकम्मे - इन कर्मों को करने वाला, समज्जिणिता - उपार्जन करके, परमाउयं - परमायु को, पालइत्ता - भोग कर, सिरिसिवेसु - सरीसृपों-पेट अथवा भुजा के बल पर चलने वाले प्राणियों की योनि में, महिसत्ताए - महिष रूप में, गोहिल्लएहिंगौष्ठिकों के द्वारा, सेट्टिकुलंसि - श्रेष्ठी के कुल में, णिक्खेवो - निक्षेप-उपसंहार।
भावार्थ - वह प्रियसेन नपुंसक इन पापपूर्ण कार्यों को ही अपना कर्त्तव्य, प्रधान लक्ष्य, विज्ञान तथा सर्वोत्तम आचरण बनाएगा। इन दुष्प्रवृत्तियों के द्वारा वह अत्यधिक पाप कर्मों का
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