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________________ द्वितीय अध्ययन - पुत्र का 'गोत्रास' नामकरण णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी संपुण्णदोहला संमाणियदोहला विणीयदोहला वोच्छिण्णदोहला संपण्णदोहला तं गन्भं सुहंसुहेणं परिवहइ। तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अण्णया कयाई णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया॥४॥ ____कठिन शब्दार्थ - अद्धरत्तकालसमयंसि - अर्द्ध रात्रि के समय, छिंदइ - काटता है, अण्णमण्णाई - अन्यान्य, अंगोवंगाणं - अंगोपांगों को, वियंगेइ - काटता है, उवणेइ - देता है, संपुण्णदोहला - संपूर्ण दोहद वाली, संमाणियदोहला - सम्मानित दोहद वाली, विणीयदोहला- विनीत दोहद वाली, वोच्छिण्णदोहला - व्युच्छिन्न दोहद वाली, संपण्णदोहलासंपन्न दोहद वाली, परिवहइ - धारण करती है। भावार्थ - तत्पश्चात् भीम कूटयाह अर्द्धरात्रि के समय अकेला ही दृढ बंधनों से बद्ध और लोहमय कसूलर्क आदि से युक्त कवच को धारण कर आयुध और प्रहरण लेकर घर से निकला और हस्तिनापुर नगर के मध्य से होता हुआ जहां पर गोमण्डप था वहां पर आया, आकर अनेक नागरिक पशुओं यावत् वृषभों में से कई एक के ऊधस् यावत् कई एक के कम्बल-सास्ना आदि एवं कई एक के अन्यान्य अंगोपांगों को काटता है, काट कर अपने घर आता है और आकर अपनी उत्पला भार्या को दे देता है। तदनन्तर वह उत्पला उन अनेकविध शूल्य (शूलाप्रोत) आदि गोमांसों के साथ सुरा आदि का आस्वादन प्रस्वादन आदि करती हुई अपनी दोहद की पूर्ति करती है, इस प्रकार संपूर्ण दोहद वाली, सम्मानित दोहद वाली, विनीत दोहद वाली, व्यच्छिन्न दोहद वाली और संपन्न दोहद वाली वह उत्पला कूटग्राही उस गर्भ को सुखपूर्वक धारण करती है। तदनन्तर उस उत्पला नामक कूटग्राहिणी ने किसी समय नौ मास पूरे होने पर बालक को जन्म दिया। पुत्र का 'गोत्रास' नामकरण तए णं ते णं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया महया सद्देणं विघुढे विस्सरे आरसिए। तए णं तस्स दारगस्स आरसियसई सोच्चा णिसम्म हत्थिणाउरे णयरे बहवे णगरगोरूवा जाव वसभा य भीया तत्था तसिया उव्विग्गा सव्वओ समंता विप्पलाइत्था। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं णामधेजं करेंति, जम्हा णं अम्हं इमेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया महया चिच्चीसद्देणं विघुढे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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