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________________ विपाक सूत्र - प्रथम श्रुतस्कन्ध भावार्थ - उस मृगाग्राम नगर में एक जन्मान्ध पुरुष रहता था। आंखों वाला एक मनुष्य उसकी लकड़ी पकड़े हुए रहा करता था । उसी के सहारे वह चला करता था । उसके शिर के बाल अत्यंत अस्तव्यस्त-बिखरे हुए थे। अत्यंत मलिन होने के कारण उसके पीछे मक्खियों के. झुण्ड के झुण्ड लगे रहते थे। ऐसा वह जन्मान्ध पुरुष मृगाग्राम नगर के घर-घर में कारुण्यदैन्यमय शिक्षा वृत्ति से अपनी आजीविका चला रहा था । तेणं काणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव समोसरिए जाव परिसा णिग्गया। तए णं से विजए खत्तिए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे जहा कूणिए तहा णिग्गए जाव पज्जुवासइ ॥ १२ ॥ भावार्थ - उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी नगर के बाहर चंदनपादप उद्यान में पधारे। उनके पधारने के समाचार मिलते ही जनता उनके दर्शनार्थ निकली। तत्पश्चात् विजय नामक क्षत्रिय राजा भी महाराजा कोणिक के समान भगवान् के चरणों में उपस्थित होकर उनकी पर्युपासना करने लगा । १२ 44444 जन्मान्ध पुरुष भगवान् की सेवा में तणं से जाइअंधे पुरिसे तं महया जणसद्दं जाव सुर्णेत्ता तं पुरिसं एवं वयासी-किं णं देवाणुप्पिया! अज्ज मियग्गामे णयरे इंदमहेइ वा जाव णिग्गच्छइ ? तए णं से पुरिसे तं जाइअंधपुरिसं एवं वयासी - णो खलु देवाणुप्पिया! इंदमहेइ वा जाव णिग्गच्छइ, एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे जाव विहरड़, तए णं एए जाव णिग्गच्छंति । तए णं से अंधपुरिसे तं पुरिसं एवं वयासी- गच्छामो जं देवाणुप्पिया! अम्हेवि समणं भगवं जाव पज्जुवासामो । तए णं से जाइअंधे पुरिसे तेणं पुरओ-दंडएणं (पुरिसेणं) पगहिज्जमाणे पगहि जमाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागए २ त्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करेत्ता वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता जाव पज्जुवासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे विजयस्स खत्तियस्स तीसे य० धम्ममाइक्खड़ जाव परिसा (जाव) पडिगया, विजए वि गए ॥१३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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