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________________ विपाक ३०६ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ........................................................... वयासी-तहेव णं तं अम्मयाओ! जण्णं तुम्भे ममं एवं वयह-“एस णं जाया! णिग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे पुणरवि तं चेव जाव तओ पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भंगवओ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि" एवं खलु अम्मयाओ! णिग्गंथे पावयणे कीवाणं कापुरिसाणं इहलोगपडिबद्धाणं परलोगणिप्पिवासाणं दुरणुचरे पाययजणस्स णो चेव णं धीरस्स णिच्छिय ववसियस्स एत्थ किं दुक्कर करणयाए तं इच्छामि णं अम्मयाओ। तुन्भेहिं अन्भणुण्णाए समाणे समणस्स जाव पव्वइत्तए॥२२७॥ कठिन शब्दार्थ - इहलोगपडिबद्धाणं - इस लोक संबंधी लालसाओं में फंसे हुए, परलोगणिप्पिवासाणं - परलोक के सुखों की परवाह न करने वाले, कापुरिसाणं - कापुरुष यानी नीच, कीवाणं - पुरुषार्थ हीन कायर पुरुषों के लिए, दुरणुचरे - पालन करना कठिन है, पाययजणस्स - मुझ सरीखे, णिच्छियववसियस्स - दृढ़ निश्चय वाले। . :. भावार्थ - सुदाहुकुमार के माता-पिता जब चारित्र पालन की कठिनता बता चुके तब . सुबाहुकुमार अपने माता पिता से इस प्रकार कहने लगा कि हे माता-पिताओ! आपने चारित्र पालन की जो कठिनता बतलाई है सो इस लोक के सुखों की लालसाओं में फंसे हुए और परलोक के सुखों की परवाह न करने वाले कापुरुष एवं पुरुषार्थ हीन कायर पुरुषों के लिए .. चारित्र पालन करना कठिन है किन्तु मुझे सरीखे दृढ़ निश्चय वाले धैर्यवान् पुरुष के लिए चारित्र पालन करना क्या कठिन है? अर्थात् कुछ भी कठिन नहीं है। इसलिए आप मुझे आज्ञा दीजिये। आपकी आज्ञा ले कर मैं श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षा लेना चाहता हूँ। एक दिवस का राज्य तएणं तं सुबाहुकुमारं अम्मापियरो जाहे णो संचाएइ बहूहिं विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा, ताहे अकामए चेव सुबाहुकुमारं एवं वयासी-इच्छामो ताव जाया। एगदिवसमवि ते रायसिरिं पासित्तए। तएणं से सुबाहुकुमारे अम्मापियरमणुवत्तमाणे तुसिणीए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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