SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६८ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध •••••••••••.............................................. - माता-पिता और पुत्र संवाद तएणं सा धारिणीदेवी ससंभमोववत्तियाए तुरियं कंचणभिंगारमुहविणिग्गय : सीयलजल विमलधाराए परिसिंचमाणा णिव्वावियगायलट्ठी उक्खेवगतालविंटवीयणगजणियवाएणं सफु सिएणं 'अंतोउरपरियणेणं आसासिया समाणी मुत्तावलिसण्णिगास पवडंत अंसुधाराहिं सिंचमाणी पओहरे, कलुणविमणदीणा रोयमाणी कंदमाणी तिप्पमाणी सोयमाणी विलवमाणी सुबाहुकुमारं एवं वयासीतुम्हंसि णं जाया! अम्हं एगे पुत्ते, इट्टे, कंते, पिए मणुण्णे मणामे धिज्जे क्सासिए सम्मए बहुमए अणुमए भण्डकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियउस्सासए हिययाणंदजणणे उंबरपुप्फ व दुल्लहे सवणयाए किमंग पुण पासणयाए। णो खलु जाया! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पओगं सहित्तए, तं भुंजाहि ताव जाया। विउले माणुस्सए, कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो। तओ पच्छा अम्हेहिं. कालगएहिं परिणयवए वड्डिय कुलवंसतंतुकज्जम्मि णिरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि॥२२०॥ ____ कठिन शब्दार्थ - ससंभमोववत्तियाए - व्याकुल चित्त हो कर धरती पर गिर पड़ी, अंतोउरपरियणेणं - अन्तःपुर परिवार ने, कंचणभिंगारमुहविणिग्गयसीयलजलविमलधाराएसोने की झारी के मुख से निकलती हुई निर्मल शीतल जल की धारा से, णिव्वावियगायलट्ठीशरीर को ठंडा किया, उक्खेवगतालविंटवीयणगजणियवाएणं सफुसिएणं - बांस आदि के पत्ते की डंडी वाले तथा तालवृक्ष के पत्तों के पंखे से पानी की बूंदों सहित हवा करके, आसासिया समाणी - सचेत किया, मुत्तावलिसण्णिगासपवडत असुपाराहि - मोतियों की पंक्ति के समान निरन्तर गिरती हुई आसुओं की धारा से, कलुणविमणदीणा - दया पात्र उदास और दीन होती हुई, रोयमाणी- रोती हुई, कंदमाणी - आक्रन्दन करती हुई, तिप्पमाणी - मुख से लार पटका कर रोती हुई, सोयमाणी - शोक करती हुई, विलवमाणी - विलाप करती हुई, धिजे - धीरज बंधाने वाले, वेसासिए - विश्वास पात्र, सम्मए - सम्मत-मानने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy