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________________ प्रथम अध्ययन - माता-पिता के समक्ष निवेदन २९७ विमुक्क संधि बंधणा - शरीर की सब संधियां ढीली पड़ गई, कोट्टिमतलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति पडिगया - सारा शरीर धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा। भावार्थ - इसके बाद श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार करके सुबाहकुमार अश्वरथ पर सवार होकर अपने महल में चला गया। वहाँ जाकर अपने माता-पिता को नमस्कार करके इस प्रकार कहने लगा कि हे माता-पिताओ! मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास धर्मोपदेश सुना है। वह धर्म मुझे बड़ा रुचिकर हुआ है। उसकी मैं बार-बार इच्छा करता हूँ। सुबाहुकुमार के उपरोक्त कथन को सुन कर उसके माता-पिता ने कहा कि हे पुत्र! तुम धन्य हो, पुण्यवान् हो और कृतार्थ हो तुम शुभ लक्षण वाले हो क्योंकि तुमने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास धर्म श्रवण किया है और वह धर्म तुम्हें इष्ट अभीष्ट और रुचिकर हुआ है। इसके पश्चात् सुबाहुकुमार ने दो तीन बार कहा कि हे माता-पिताओ! मैंने भगवान् के पास धर्म श्रवण किया है और वह धर्म मुझे इष्ट, अभीष्ट एवं रुचिकर हुआ है इसलिए मैं आपकी आज्ञा लेकर भगवान् के पास मुंडित. होकर गृहस्थवास से निकल कर मुनि दीक्षा लेना चाहता हूँ। तदनन्तर धारिणी रानी इन अनिष्ट, अकांतकारी अप्रियकारी, अमनोज्ञ, असुंदर, अश्रुतपूर्व (पहले कभी न सुने हुए) और कठोर वचन सुन कर और हृदय में धारण करके इस प्रकार के महान् पुत्र के मानसिक शोक से महा दुःखी हुई। रोम-रोम से पसीना निकलने लगा जिससे सारा शरीर भीग गया। शोक से शरीर थर-थर कापने लगा। चेहरा निस्तेज यानी फीका पड़ गया। मुख दीन और म्लान हो गया अथवा दीन और बेसुध के समान वचन बोलने लगी। हाथ से मसलने से मुरझाई हुई कमल की माला के समान वह मुरझा गई। तत्क्षण ही उसका शरीर दुर्बल और रुग्ण हो गया। उसका शरीर लावण्य शून्य हो गया और शरीर की शोभा नष्ट हो गई। शरीर दुर्बल होने से आभूषण ढीले हो गये। सफेद चूड़ियाँ धरती पर जा गिरी और टूट कर चूर चूर हो गई। ओढ़ने का वस्त्र शिर से दूर हो गया। शिर के कोमल केश इधर-उधर बिखर गये। मूर्छा आने से चेतना नष्ट हो गई। परशु-कुल्हाड़ी से काटी हुई चम्पकवेल की तरह मुरझा गई। उत्सव समाप्त होने पर इन्द्र स्तंभ के समान शोभा रहित हो गई। उसके शरीर की सब संधियाँ ढीली पड़ गई। उसका सारा शरीर धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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