SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विपाक सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध आयंते चोक्खे परम सुइब्भूए अंजलि मउलियहत्थे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आंयाहिण पयाहिणं करेइ, आयाहिणपयाहिणं करित्ता तिक्खुत्तो जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ ॥२११ ॥ कठिन शब्दार्थ - महया भडचडकरपहकर - बंधपरिक्खित्ते - बहुत से सुभट, नौकर चाकर और दासों से घिरा हुआ, तुरए घोड़ों को, पुप्फतंबोलाउहमाइयं फूल, तम्बोल (पान) और अस्त्र शस्त्र आदि को, वाणहाओ जूते आदि को, विसज्जेइ छोड़ दिया.. एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ - एकसाटिक बीच में बिना सिले हुए एक वस्त्रं का उत्तरासंग किया, अंजलि मउलियहत्थे - अञ्जलि करके यानी दोनों हाथों को जोड़ करके, आयाहिणपयाहिणं - आदक्षिण- प्रदक्षिणा । २७८ - Jain Education International - - भावार्थ - इसके पश्चात् सुबाहुकुमार जहाँ स्नान घर था वहाँ आया और आकर स्नान किया, तिलक छापे आदि किये। सभा आदि का वर्णन उववाई सूत्र के अनुसार यहाँ पर भी कह देना चाहिए। यावत् शरीर पर चंदन का लेप किया सब अलंकारों से विभूषित हुआ और घर से निकला। स्नान घर से बाहर निकल कर जहाँ बाहर का सभा भवन था और जहाँ पर चार घंटों वाला अश्वरथ था वहाँ आया, आकर चार घण्टों वाले अश्वरथ पर चढ़ा, चार घंटों वाले अश्वरथ पर चढ़ कर कोरंट के फूलों की मालाओं से शोभित छत्र को धारण करके बहुत से सुभट, नौकर, चाकर और दासों से घिरा हुआ वह सुबाहु कुमार हस्तिशीर्ष नगर के मध्य होकर जहाँ पुष्पकरण्ड उद्यान था वहाँ आया, आकर घोड़ों को ठहरा कर रथ को ठहरा कर, रथ से नीचे उतरा। रथ से उतर कर फूल, तम्बोल, अस्त्र शस्त्र और जूते आदि को वहीं छोड़ दिया | मुख पर उत्तरासंग किया। शुद्ध, अशुचि से रहित और परम पवित्र होकर दोनों हाथों को जोड़ कर जहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे वहाँ आया, आकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा कर वंदना की और वंदना करके तीन प्रकार की पर्युपासना से अर्थात् मन, वचन और काया से उसने उपासना की । विवेचन - सुबाहुकुमार स्नान करके, शरीर पर चंदन आदि का लेप करके उत्तम वस्त्राभूषणों से अलंकृत हुआ। फिर घोड़ों के रथ में बैठ कर पुष्पकरण्ड उद्यान में आया। रथ से नीचे उतर कर उसने फूलमाला पात्र, अस्त्र, शस्त्र, छत्र और जूते आदि को वहीं छोड़ दिया। फिर मुख For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy