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प्रथम अध्ययन
कठिन शब्दार्थ - चाउरघंट
जिसमें घोड़े जोते हो, खिप्पामेव
पच्चप्पिणह - वापिस सौंपो ।
पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा सुबाहुकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा जाव
पच्चप्पिणंति॥२१०॥
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भगवान् की पर्युपासना
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चार घंटों वाले, आसरहं
शीघ्र ही, उवट्ठवेह - लाओ, आणत्तियं
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अश्व रथ को, जुत्तामेव
भावार्थ तदनन्तर कञ्चुकी पुरुष से यह बात सुन कर एवं हृदय में धारण करके सुबाहुकुमार हर्षित एवं संतुष्ट हुआ फिर अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर इस प्रकार कि - हे देवानुप्रियो ! जिसमें घोड़े जोते हुए हो ऐसे चार घंटों वाले अश्व रथ को शीघ्र ही ओ और लाकर यह मेरी आज्ञा मुझे वापिस सौंपो अर्थात् मुझे सूचित करो। सुबाहुकुमार के इस प्रकार कहा जाने पर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उनकी आज्ञानुसार अश्व रथ ला कर उनको सूचित किया ।
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आज्ञा,
विवेचन - अपने नौकरों द्वारा भगवान् के आगमन की खबर सुन कर सुबाहुकुमार बहुत प्रसन्न हुआ। उसने तत्काल अपने नौकरों को आज्ञा दे कर चार घोडों वाला रथ मंगवाया ।
भगवान् की पर्युपासना
तए णं से सुबाहुकुमारे जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छंइ, उवागच्छित्ता हा कयबलिकम्मे जहा उववाइए परिसा वण्णओ तहा भाणियव्वं जाव चंदणोवलित्तगायंसरीरे सव्वालंकार विभूसिए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ, चाउग्घंटं आसरहं दुरूहित्ता सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडकरपहकर बंधपरिक्खित्ते हत्थिसीसं णयरं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव पुप्फकरंडे चेइए तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता तुरए णिगिन्हि, तुरह णिगिण्हित्ता रहं ठवेइ रहं ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहइ, रहाओ पच्चोरुहित्ता पुप्फतंबोलाउहमाइयं वाणहाओ य विसज्जेइ, विसज्जित्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, उत्तरासंगं करित्ता
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