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________________ २६४ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध कठिन शब्दार्थ - सत्तहत्थुस्सेहे - सात हाथ की अवगाहना वाले, अणुलोमवायुवेगे - शरीर के अंदर की अनुकूल वायु के वेग वाले, कंकगहणी - कंक पक्षी की तरह नीरोग शरीर वाले, कवोयपरिणामे - कबूतर की तरह तीव्र जठराग्नि वाले, सउणिपोसपिटुंतरोरुपरिणए -.. शकुनि पक्षी की तरह निर्लेप गुदा वाले पीठ, पसवाडे और जांघों के सुन्दर आकार वाले, पउमुप्पलगंध सरिसणिस्सास सुरभिवयणे - पद्म और नीले कमल के समान सुगंधित निःश्वास वाले, छवी - उत्तम वर्ण और कोमल त्वचा वाले, णिरायंक उत्तमपसत्थ अइसेस णिरुवमपलेनीरोग और उत्तम सफेद तथा निरुपम मांस वाले, जल्लमल्लकलंक सेयरयदोसवज्जिय सरीर णिरुवलेवे - मैल, अशुभतिलक आदि, पसीना और धूल आदि की मलिनता से रहित निर्मल शरीर वाले, छाया उजोइ अंगमंगे - कांति की चमक से युक्त शरीर वाले, घणणिचियसुबद्धलक्खण-उण्णय-कूडागरणिभपिंडिअग्गसिरए - लोह के घन के समान दृढ़ स्नायु बंधन । वाले तथा शुभ लक्षणों वाले, पर्वत के शिखर के समान उन्नत शिर वाले, सामलिबोंडघणणिचियच्छोडिय मिउविसय पसत्थसुहुम लक्खण सुगंधसुंदर भुअमोअग. भिंगणेलकज्जल पहिट भमर गण णिद्ध णिउरंब णिचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरएउनके शिर के बाल आक की रुई की तरह नरम, स्वच्छ, शुभ, चिकने और शुभ लक्षणों से युक्त, सुगंधित, सुंदर, भुजमोचक रत्न, भृङ्ग नील, काजल और मन्दोन्मत भ्रमरों के समूह के समान काले, दाहिनी तरफ मुड़े हुए, सघन और धुंघराले थे, दालिमपुप्फप्पगास-तवणिज्जसरिस-णिम्मल-सुणिद्ध केसंत-केसभूमी - उनके मस्तक की चमड़ी अनार के फूल और तपे हुए सोने की तरह लाल, निर्मल और चिकनी थी, घण-णिचिय-छत्तागारुत्तमंगदेसे-भरा हुआ और छत्र के समान उन्नत मस्तक, णिव्वणसमलट्ठमट्टचंदद्धसमणिडाले- निव्रण यानी घाव रहित, एक समान, मनोज्ञ, दीप्त और अर्द्धचन्द्र के आकार के समान उनका ललाट था, उडुवइपडिपुण्णसोमवयणे- पूर्ण चन्द्रमा के समान सौम्य मुख, अल्लीणपमाणजुत्तसवणेउचित प्रमाण युक्त कान, सुस्सवणे - बड़े सुन्दर, पीणमंसलकवोलदेसभाए - कपोल स्थूल यानी पुष्ट थे, आणामिय चावरुइल-किण्हान्भराइतणु-कसिणणिद्धभमुहे - नमे हुए धनुष के समान, काले बादल की तरह काली और स्निग्ध उनकी भौहें थी, अवदालिय-पुंडरीयणयणे - खिले हुए कमल के समान नेत्र, कोआसिय धवलपत्तलच्छे - उनके कोये विकसित कमल सरीखे उज्ज्वल और पलक वाले थे, गरुलायत उज्जुत्तुंगणासे - गरुड की तरह लम्बी, सीधी ' और ऊंची नाक, उवचिय-सिलप्पवाल-बिंबफल-सण्णिभाहरोटे - शिला रत्न, प्रवाल और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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