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प्रथम अध्ययन - भगवान् महावीर स्वामी का वर्णन
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रहने लगा। प्रावृट् ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद, हेमंत, वसंत और ग्रीष्म ऋतु तक इन छहों ऋतुओं में ऐश्वर्य के अनुसार आनंदानुभव करता हुआ समय को व्यतीत करता हुआ इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध इन पांच प्रकार के कामभोगों को भोगता हुआ रहने लगा।
विवेचन - विवाह हो जाने के पश्चात् सुबाहुकुमार उन रमणियों के साथ उत्तम कामभोग भोगता हुआ सुखपूर्वक समय बिताने लगा।
. भगवान् महावीर स्वामी का वर्णन
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जाव ठाणं संपाविउकामे अरहा जिणे केवली सत्तहत्थुस्से हे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहणारायसंघयणे अणुलोमवाउवेगे कंकग्गहणी कवोयपरिणाम सउणिपोस-पिटुंतरोरु-परिणए पउमुप्पलगंध-सरिस-णिस्सास-सुरभिवयणे छवी णिरायंक उत्तमपसत्थ-अइसेस-णिरुवमपले जल्ल-मल्ल-कलंक सेयरयदोसवज्जिय सरीरणिरुव-लेवे छाया उज्जोइअंगमंगे घणणिचियसुबद्धलक्खणं उण्णय-कूडागार-णिभपिंडि अग्गसिरए सामलिबोंड घणणिचियच्छोडिय मिउविसय-पसत्थ-सुहमलक्खण-सुगंधसुंदर-भुअमो अग-भिंगणेलकज्जलपहिट्ठ-भमर-गणणिद्धणिउरंब-णिचिय-कुंचियपयाहिणावत्त-मुद्धसिरए दालिम-पुप्फप्पगासतवणिज्ज-सरिस-णिम्मलसुणिद्ध-के संत-के सभूमी घणणिचियछत्तागारुत्तमंगदेसे णिव्वण-समलट्ठमट्ट-चंदद्धसमणिडाले उडुवइपडिपुण्ण सोमवयणे अल्लीण-पमाण-जुत्तसवणे सुस्सवणे पीणमंसलकवोल-देसभाए आणामियचावरुइल-किण्हब्भराइ-तणु-कसिणणिद्धभमुहे अवदालिय पुंडरीयणयणे कोआसिय-धवल-पत्तलच्छे गरुलायतउज्जुतुंगणासे उवचियसिलप्पवाल-बिंबफल-सण्णिभाहरोटे पंडुर-ससिसयलविमल-णिम्मलसंख-गोखीर-फेण-कुंददगरय-मुणालिय धवल-दंतसेढी अखंडदंते अप्फुडियदंते अविरलदंते सुणिद्धदंते सुजायदंते एगदंतसेढी विव अणेगदंते हुयवहणिद्धंत-धोयतत्ततवणिज्ज रत्ततल तालुज़ीहे॥२०५॥
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