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प्रथम अध्ययन - सुबाहुकुमार का कला शिक्षण
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कर घोर युद्ध करने का ज्ञान, लयाजुद्धं - लतायुद्ध करने का ज्ञान, ईसत्थं - थोड़ी वस्तु को अधिक और अधिक को थोड़ी दिखाने की कला, छरुप्पवायं - खुरपे सरीखे शस्त्र का ज्ञान, धणुव्वेयं - धनुर्विधा का ज्ञान, हिरण्णपागं - चांदी शुद्ध करने का ज्ञान, सुत्तखेडं - सूत्र छेदन करने की कला, णालियाखेडं - कमल की नाली को भेदने की कला, कडच्छेजं - चटाई के समान वस्तुओं को छेदने का ज्ञान, सज्जीवं - मरे हुए को जिंदे के समान दिखलाने की कला का ज्ञान, णिज्जीवं - जीवित को मरे हुए के समान दिखलाने की कला का ज्ञान।
भावार्थ - इसके पश्चात् गर्भ के समय को मिला कर आठ वर्ष से कुछ अधिक समय हो गया तब सुबाहुकुमार के माता-पिता ने शुभ तिथि, शुभ करण और शुभ मुहूर्त में उस सुबाहुकुमार को कलाचार्य को सौंप दिया। तदनन्तर उस कलाचार्य ने सुबाहुकुमार को लेखन संबंधी और गणितप्रधान यानी गणित से लेकर पक्षी आदि के बोलने के शकुन ज्ञान तक बहत्तर कलाएँ सूत्र रूप से अर्थात् मूल रूप से और अर्थ रूप से तथा करण रूप से यानी प्रयोग रूप से सिखाई और अभ्यास कराया। वे बहत्तर कलाएं इस प्रकार हैं - १. अक्षर लिखने की कला २. गणितकला ३. रूपकला यानी चित्रकारी ४. नाटक करने की कला ५. गायन की कला ६. बाजे बजाने की कला ७. स्वर उच्चारण की कला ८. मृदंग, मुरज आदि बजाने की कला ६. ताल के बराबर बजाने की कला १०. जुआ खेलने की कला ११. जनवाद नामक विशेष जुआ खेलने की कला १२. पासा डालने की कला १३. शतरंज चौपड़ आदि खेलने की कला १४. ग्राम, नगर आदि की रक्षा करने की कला १५. जल और मिट्टी के संयोग से बने पदार्थों का ज्ञान १६. अन्न पकाने की कला १७. जल को स्वच्छ एवं निर्मल करने की कला १८. वस्त्र की उत्पत्ति संबंधी आदि सारा ज्ञान १६. शरीर पर किये जाने वाले विलेपन संबंधी सारा ज्ञान २०. शयन संबंधी ज्ञान २१. आर्या आदि छंद रचना का ज्ञान २२. पहेली आदि गूढ़ आशय वाले छंद बनाने का ज्ञान २३. मागध रस युक्त काव्य बनाने का ज्ञान अथवा मागधी भाषा की कविता बनाने संबंधी ज्ञान २४. प्राकृत, अर्द्धमागधी आदि भाषाओं की गाथा बनाने संबंधी ज्ञान २५. गीत बनाने का ज्ञान २६. श्लोक बनाने का ज्ञान २७. चांदी बनाने की विधि का ज्ञान २८. सोना बनाने की विधि का ज्ञान २६. चूर्ण बनाने और वस्तुओं का यथोचित . संयोग करने की विधि ३०. आभूषण बनाने और धारण करने संबंधी ज्ञान ३१. स्त्रियों का श्रृंगार संबंधी ज्ञान ३२. सामुद्रिक शास्त्र में बताये गये स्त्री के लक्षण संबंधी ज्ञान ३३. पुरुष के लक्षण संबंधी ज्ञान ३४. घोड़े के लक्षणों का ज्ञान ३५. हाथी के लक्षणों का ज्ञान ३६. गाय बैल के
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