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विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध
................................................ कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य करणओ य सेहावेइ सिक्खावेइ तंजहा - लेहं गणियं रूवं णटुं गीयं वाइयं सरगयं पोक्खरगयं समतालं जूयं जणवायं पासयं अट्ठावयं पोरेवच्चं दगमट्टियं अण्णविहिं पाणविहिं वत्थविहिं विलेवणविहिं सयणविहिं अज्जं पहेलियं मागहियं गाहं गीइयं सिलोयं हिरण्णजुत्तिं सुवण्णजुत्तिं
चुण्णजुत्तिं आभरणविहिं तरुणीपडिकम्मं इथिलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं गोणलक्खणं कुक्कुडलक्खणं छत्तलक्खणं डंडलक्खणं असिलक्खणं मणिलक्खणं कागणिलक्खणं वत्थुविज्जं खंधारमाणं णगरमाणं वूहं परिवूहं चारं परिचारं चक्कवूहं गरुलवूहं सगडवूहं जुद्धं णिजुद्धं जुद्धाइजुद्धं अट्ठिजुद्धं मुट्ठिजुद्धं बाहुजुद्धं लयाजुद्धं ईसत्थं छरुप्पवायं धणुव्वेयं हिरण्णपागं सुर्वण्णपागं सुत्तखेडं वट्टखेडं णालियाखेडं पत्तच्छेज्जं कडच्छेज्जं सज्जीवं णिज्जीवं सउणरुयमि||१६६॥
कठिन शब्दार्थ - साइरेग अट्ठवासजायगं - आठ वर्ष से कुछ अधिक समय होने पर, सोहणंसि- शुभ, तिहिकरणमुहुत्तंसि - तिथि, करण और मुहूर्त में, कलायरियस्स - कलाचार्य को, उवणेति - सौंप दिया, लेहाइयाओ - लेखन संबंधी, गणियप्पहाणाओ - गणित प्रधान, सउणरुयपज्जवसाणाओ - पक्षी आदि से बोलने के शकुन ज्ञान तक, सुत्तओ - सूत्र रूप से, करणओ - करण रूप से, सेहावई - सिखाई, सिक्खावेइ - अभ्यास कराया, सरगयं - स्वर उच्चारण की कला, जूयं - जुआ खेलने की कला, जणवायं - जनवाद नामक विशेष जूआ खेलने की कला, पोरेवच्चं - ग्राम, नगर आदि की रक्षा करने की कला, अज्जं - आर्या आदि छंद रचना का ज्ञान, गाहं - गाथा बनाने संबंधी ज्ञान, हिरण्णजुत्तिं - चांदी बनाने की विधि का ज्ञान, तरुणी पडिकम्मं - स्त्रियों का श्रृंगार संबंधी ज्ञान, कागणिलक्खणं - काकिणी आदि रत्नों के लक्षण का ज्ञान, वत्थुबिज्ज - वास्तु यानी घर आदि बनाने की विधि का ज्ञान, खंधारमाणं - अक्षोहिणी आदि सेना की रचना करने की कला का ज्ञान, वूहं - व्यूह रचना करने का ज्ञान, परिवूहं - शत्रु सेना के व्यूह को भेदने की कला का ज्ञान, चारं - सेना के संचार करने की कला का ज्ञान, परिचारं - विरोधी सेना के विरुद्ध सेना संचालित करने का ज्ञान, चक्कवूहं - चक्र के आकार की व्यूह रचना करने का ज्ञान, जुद्धाइजुद्धं - धावा मार
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