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________________ २४२ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध इसके पश्चात् अदीनशत्रु राजा ने अठारह श्रेणि और प्रश्रेणि यानी जातियों और उपजातियों को बुलाया, बुला कर इस प्रकार कहा कि - हे देवानुप्रियो! तुम जाओ और हस्तिशीर्ष नगर के अंदर और बाहर ऐसा प्रबंध करो कि दस दिन तक कोई भी चुंगी न ले, कर-महसूल न ले। राजा का कोई पुरुष जनता को संताप न दे, कोई किसी को दण्ड न दे, कोई किसी को कुदण्ड न दे, कर्जा मांगने वाला कोई किसी के घर पर तगादा न करे, कर्जदार के घर पर धरना न दे, मृदङ्ग बाजा निरन्तर बजाया जाय। नगर को ताजी फूलमालाओं से शोभित करो। उत्तम गणिकाओं का नाच कराओ। बहुत से ताल बजा कर नाटक करने वालों से नाटक कराओ। प्रमोद और क्रीड़ा करने वालों से नगर सुशोभित करो। इसके सिवाय कुल की मर्यादा के अनुसार यथायोग्य पुत्र जन्म संबंधी कार्य करो। यह सारा कार्य करके मेरी यह आज्ञा मुझे वापिस सौंपो अर्थात् मुझे सूचित करो। उन सब लोगों ने भी उसी प्रकार कार्य किया और करके राजा को वापिस सूचित किया। .. विवेचन - दासियों के द्वारा पुत्र जन्म के शुभ समाचार को प्राप्त कर राजा बड़ा प्रसन्न : हुआ। उसने नगर को साफ सुथरा कर शोभायमान करने और प्रजाजनों को आमोद प्रमोद करने की आज्ञा दी। कर्जदार के घर तगादा करना तथा धरना देने की मनाई की और दस दिन के लिए राज्य का कर भी माफ कर दिया। अनेक संस्कार ___तएणं से अदीणसत्तू सया बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे, सइएहि य सहस्सिएहि य सयसहस्सिएहि य जाएहिं दाएहिं भागेहिं दलयमाणे दलयमाणे पडिच्छमाणे पडिच्छमाणे एवं च णं विहरइ। . तएणं तस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जायकम्मं करेंति, करित्ता बिइए दिवसे जागरियं करेंति, करित्ता तइए दिवसे चंदसूरदंसणियं करेंति, करित्ता एवामेव णिव्वत्ते सुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसाहे दिवसे विउलं असणं पाणं खाइम साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावित्ता मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधी-परिजणं बलं च बहवे गणणायग दंडणायग जाव आमंतेइ। तओ पच्छा पहाया कयबलिकम्मा कयकोउय जाव सव्वालंकार विभूसिया महइमहालयंसि भोयणमंडवंसि तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं मित्तणाइगणणायग जाव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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