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________________ प्रथम श्रुतस्कंध का प्रथम अध्ययन मियापुत्ते णाम पठमं अज्झयणं मृगापुत्र नामक प्रथम अध्ययन - तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था वण्णओ, पुण्णभद्दे चेइए॥१॥ . . ..कठिन शब्दार्थ - तेणं कालेणं - उस काल में, तेणं समएणं - उस समय में, णयरी- नगरी, होत्था ; थी, वण्णओ - वर्णक-वर्णन ग्रंथ, पुण्णभद्दे चेइए - पूर्णभद्र चैत्य। ___ भावार्थ - उस काल और उस समय में चम्पा नाम की एक नगरी थी। चम्पा नगरी का वर्णन औषपातिक सूत्र के अनुसार समझ लेना चाहिये। उस नगरी के बाहर ईशान कोण में एक पूर्णभद्र नामक चैत्य-उद्यान था। . विवेचन - 'तेणं कालेणं' - में 'काल' शब्द अवसर्पिणी काल के चौथे आरे का बोधक है और 'तेणं समएणं' में 'समय' शब्द से चौथे आरे के उस भाग का ग्रहण है जब यह कथा कही जा रही है। ‘वण्णओ' पद से सूत्रकार का अभिप्राय वर्णन ग्रंथ से है अर्थात् जिस प्रकार औपपातिक आदि सूत्रों में नगर, चैत्य आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है उसी प्रकार यहां भी चम्पा नगरी का वर्णन जान लेना चाहिये। ___आगमों के संख्या क्रम में प्रश्न व्याकरण सूत्र दशवां और विपाक सूत्र ग्यारहवां अंग है। प्रश्नव्याकरण के बाद विपाक सूत्र का स्थान है। इन दोनों सूत्रों में पारस्परिक संबंध इस प्रकार है - प्रश्न व्याकरण सूत्र के प्रथम पांच अध्ययनों में पांच आम्रवों और अन्त के पांच अध्ययनों में पांच संकरों का निरूपण किया गया है जबकि ग्यारहवें अंग विपाक सूत्र में आस्रवजन्य अशुभ तथा संवरजन्य शुभ कर्मों के विपाक-फल का वर्णन किया गया है। इस प्रकार दोनों में पारस्परिक संबंध रहा हुआ है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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