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________________ २०६ प्रथम अध्ययन - नगर आदि का वर्णन A rr.................................................... गोमहिसगवेलगप्पभूए पडिपुण्णजंतकोसकोट्ठागारा-उधागारे बलवं दुब्बलपच्चामित्ते ओहयकंटयं णिहयकंटयं मलियकंटयं उद्धियकंटयं अकंटयं ओहयसत्तुं णिहयसत्तुं मलियसत्तुं उद्धियसत्तुं णिज्जियसत्तुं पराइअसत्तुं ववगयदुभिक्खं मारिभयविप्पमुक्कं खेमं सिवं सुभिक्खं पसंतडिंब-डमरं रज्जं पसासेमाणे विहरई" इन पदों का भावार्थ इस प्रकार है - वह राजा महाहिमवान् अर्थात् हिमालय के समान महान् था तात्पर्य यह है कि जैसे समस्त पर्वतों में हिमालय पर्वत महान् माना जाता है उसी प्रकार शेष राजाओं की अपेक्षा वह राजा महान् था तथा मलय-पर्वत विशेष, मंदर-मेरु पर्वत, महेन्द्र-पर्वत विशेष अथवा इन्द्र, इनके समान वह प्रधान था। वह राजा अत्यंत विशुद्ध-निर्दोष तथा दीर्घ-चिरकालीन जो राजाओं का कुलरूप वंश था, उसमें उत्पन्न हुआ था। उसका प्रत्येक अंग राजलक्षणों-स्वस्तिक आदि चिह्नों से निरन्तर-बिना अंतर के शोभायमान रहता था। वह बहुतजनों का माननीय था, पूजनीय था, सर्वगुण युक्त था। क्षत्रिय' अर्थात् विपत्ति में पड़े हुए प्राणियों की रक्षा करने वाला था। मुदित अर्थात् प्रसन्न था अथवा निर्दोष मातृपक्ष वाला था। उसके बाप दादाओं ने उसका राज्याभिषेक किया था। वह माता पिता का विनय करने वाला सत्पुत्र था, दयालु था, राज्य व्यवस्था के लिए नियम बनाने वाला था, अपने बनाये हुए नियमों को पालने वाला, क्षेम करने वाला और स्वयं क्षेम रूप था। मनुष्यों में इन्द्र के समान था। प्रजा के लिये पिता के समान था क्योंकि वह प्रजा का पालक था। प्रजा में शांति करने वाला होने से वह पुरोहित के समान था। सन्मार्ग दिखाने वाला था, अद्भुत कार्य करने वाला था, श्रेष्ठ मनुष्यों वाला था, मनुष्यों में उत्तम था, पुरुषों में सिंह के समान था। शत्रुओं के लिये भयंकर होने के कारण वह पुरुषों में व्याघ्र के समान था। शत्रुओं पर अपने क्रोध को सफल करने के कारण वह पुरुषों में आशीविष के समान था। पुरुषों में पुंडरिक कमल के समान था। पुरुषों में गंधहस्ती के समान था। सब तरह से सम्पन्न, दीप्त यानी आत्म गौरव वाला और विनय आदि गुणों. से प्रसिद्ध था। उसके भवन, शयन, आसन, यान और वाहन विशाल और बहुत थे। उसके पास बहुत धन, बहुत सोना चांदी आदि सम्पत्ति थी। वह आमदनी के उपायों में सदा लगा रहता था। वह गरीबों को बहुत अन्न पानी दिया करता था। उसके दास, दासी, गाय, बैल, भैंस, भेड़ आदि पशु बहुत थे। बहुत से खजाने, कोठार और आयुधशालाएं थीं। उसके पर्याप्त सेना थी। उसके शत्रु निर्बल थे। उसने अपने कण्टकों को अर्थात् द्वेषी गोत्रजों को दबा दिया था। अपने कण्टकों का विनाश कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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