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विपाक सूत्र - प्रथम श्रुतस्कन्ध
देवदत्ता का राजा को अर्पण
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णक्खत्त
तए णं से दत्ते गाहावई अण्णया कयाइ सोभणंसि तिहि-करण - दिवसत - मुहुत्तंसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्तणाइ० आमंतेड़ हाए जाव पायच्छित्ते सुहासणवरगए तेणं मित्त० सद्धिं संपरिवुडे तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणे० विहरड़ जिमियभुत्तुत्तराग०-आयंते चोक्खे परमसूड़भूए तं मित्त-णाइ-णियग० विउलगंधपुप्फ जाव अलंकारेणं सक्कारेइ० देवदत्तं दारियं ण्हायं जाव पायच्छिता विभूसियसरीरं पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरुहेइ दुरुहित्ता सुबहुमित्त जाव सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव णाइयरवेणं रोहीडयं णयरं मज्झमज्झेणं जेणेव वेसमणरण्णो गिहे जेणेव वेसमणे राया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता करयल जाव वद्धावेइ, वद्धावेत्ता वेसमणस्स रण्णो देवदत्तं दारियं उवणेइ ।। १५५ ।।
कठिन शब्दार्थ - सोभणंसि - शुभ, तिहि करण - दिवस - णक्खत्त - मुहुत्तंसि - तिथि, करण, दिन, नक्षत्र और मुहुर्त में, जिमियभुत्तुत्तरागए - भोजन के अनन्तर वह उचित स्थान पर आया, पुरिससहस्सवाहिणिं - पुरुष सहस्रवाहिनी - हजार पुरुषों से उठाई जाने वाली, णाइयरवेणंनादित ध्वनि से, वद्धावेइ - बधाई देता है, उवणेड़ - अर्पण कर देता है।
भावार्थ - तब दत्त गाथापति किसी अन्य समय शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त मैं विपुल अशनादिक सामग्री तैयार करा कर मित्र ज्ञाति स्वजन और संबंधी आदि को आमंत्रित कर स्नान यावत् दुष्ट स्वप्नादि के फल को नाश करने के लिये मस्तक पर तिलक और अन्य मांगलिक कार्य करके सुखप्रद आसन पर स्थित हो उस विपुल अशनादिक का मित्र, ज्ञाति, स्वजन संबंधी एवं परिजनों के साथ आस्वादन, विस्वादन आदि करने के अनन्तर उचित
स्थान पर बैठकर आचान्त - आचमन किये हुए, चोक्ष - मुखगत लेपादि को दूर किये हुए अतः परम शुचिभूत हुआ मित्र ज्ञातिजन आदि का विपुल पुष्प, वस्त्र, गंध, माला और अलंकार से सत्कार करता है, सम्मान करता है। तदनन्तर स्नान करा कर यावत् शारीरिक विभूषा से विभूषित की गई देवदत्ता बालिका को एक हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली शिविका में बिठा कर अनेक मित्रों, ज्ञातिजनों आदि से घिरा हुआ सर्व ऋद्धि यावत् वादिन्त्रों के शब्दों के साथ
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