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________________ १६४ विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध श्रीयक की नरक में उत्पत्ति तए से सिरीर महाणसिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविजे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिपिता तेतीसं वाससवाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छडीए पुडवीए उपवण्॥१८॥ ___ भावार्थ - तदनन्तर इन्हीं कर्मों को करने वाला, इन्हीं कर्मों में प्रधानता रखने वाला, इन्हीं को विद्या-विज्ञान रखने वाला और इन्हीं पापकर्मों को अपना सर्वोत्तम आचरण मानने वाला वह श्रीयक रसोइया अत्यधिक पापकर्मों का उपार्जन कर ३३ सौ वर्ष की परमायु को पाल कर कालमास में काल करके छठी नरक में उत्पन्न हुआ। विवेचन - श्रीयक रसोइए ने अपनी क्रूरतम पाप प्रवृत्तियों से इतने तीव्र पाप कर्मों का बंध किया कि उसे दीर्घकाल तक नरक आदि दुर्गतियों के दुःखों को भोगना पड़ेगा। यहाँ ३३०० वर्षों की आयु पूर्ण कर वह छठी नरक में उत्पन्न हुआ। जहाँ उसे २२ सागरोपम तक अनेकानेक प्राणियों का नाश करने, मांसाहार तथा मदिरापान आदि दुष्प्रवृत्तियों के कारण दीर्घकाल तक दुःखों को भोगना पड़ेगा। ___श्रीयक रसोइए का जीवन वृत्तांत देकर सूत्रकार ने सुखाभिलाषी प्राणियों को प्राणीवध, मांसाहार, मदिरापान का त्याग करने की प्रेरणा प्रदान की है। जो इन दुष्प्रवृत्तियों में लगेगा वह श्रीयक की तरह नरकों में दुःख पाएगा और दीर्घकाल तक संसार में परिभ्रमण करेगा। शौरिकदत्त का जन्म तए णं सा समुद्ददत्ता भारिया जिंदू यावि होत्था जाया जाया दारगा विणिहायमावज्जंति जहा गंगदत्ताए चिंता आपुच्छणा ओवाइयं दोहला जाव दारगं पयाया जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोरियस्स जक्खस्स ओवाइयलद्धे तम्हा णं होउ अम्हं दारए सोरियदत्ते णामेणं। तए णं से सोरियदत्ते दारए पंचधाई जाव उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमित्ते 'जोव्वण-गमणुप्पत्ते यावि होत्था॥१३६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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