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________________ विपाक सूत्र- प्रथम श्रुतस्कन्ध 44444 वृद्धि को प्राप्त होने लगा तथा जब वह बाल भाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त हुआ इसके पिता ने इसको यावत् युवराज पद प्रदान कर दिया। तत्पश्चात् राज्य और अन्तःपुर में अत्यंत आसक्त नन्दिषेण कुमार श्रीदाम राजा को मार कर उसके स्थान में स्वयं मंत्री आदि के साथ राज्यश्री का संवर्धन करने तथा प्रजा का पालनपोषण करने की इच्छा करने लगा । तदनन्तर वह नंदिषेण कुमार श्रीदामराजा के अनेक अन्तर, छिद्र तथा विवर की प्रतीक्षा करता हुआ विचरण करने लगा । नन्दिषेण का षड्यंत्र १३४ तणं से णंदिसेणे कुमारे सिरिदामस्स रण्णो अंतरं अलभमाणे अण्णया का चित्र अलंकारियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुम्हे णं देवाणुप्पिया! सिरिदामस्स रण्णो सव्वट्ठाणेसु य सव्वभूमियासु य अंतेउरे य दिण्णवियारे सिरिदामस्स रण्णो अभिक्खणं अभिक्खणं अलंकारियं कम्मं करेमाणे विहरसि तं णं तुमं देवाणुप्पिया! सिरिदामस्स रण्णो अलंकारियं कम्मं करेमाणे गीवा खुरं णिवेसेहि तो णं अहं तुम्हं अद्धरज्जयं करिस्सामि तुमं अम्हेहिं सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिस्ससि । तणं से चित्ते अलंकारिए णंदिसेणस्स कुमारस्स वयणं एयमहं पडिसुणे । तए णं तस्स चित्तस्स अलंकारियस्स इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था - जइ णं मम सिरिदामे राया. एयमट्ठ आगमेड़ तए णं मम ण णज्जइ केणइ असुभेणं कुमारणेणं ' मारिस्सइत्तिकट्टु भीए तत्थे तसिए उव्विग्गे संजायभए जेणेव सिरिदामे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरिदामं रायं रहस्सियगं करयल० एवं वयासी एवं खलु सामी! णंदिसेणे कुमारे रज्जे य जाव मुच्छिए० इच्छइ तुब्भे जीवियाओ वववत्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणे पालेमाणे विहरित्त ॥ ११६ ॥ कठिन शब्दार्थ - अंतरं - मारने के अवसर को, अलभमाणे प्राप्त न करता हुआ, खुरं - क्षुर- उस्तरे को, णिवेसेहि - प्रविष्ट कर देना । भावार्थ - तदनन्तर श्रीदाम नरेश के मारने का अवसर प्राप्त न होने से नन्दिषेण कुमार ने Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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