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पांचवां अध्ययन - भविष्य-पृच्छा
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भगवान् के मुख से इस प्रकार का भाव पूर्ण उत्तर सुनने के पश्चात् गौतम स्वामी के मन में जो जिज्ञासा उत्पन्न हुई, अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं -
भविष्य-पृच्छा बहस्सइदत्ते णं भंते! दारए इओ कालगए समाणे कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? __ गोयमा! बहस्सइदत्ते णं दारए पुरोहिए चोसहि वासाइं परमाउयं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलीभिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए०, संसारो तहेव० पुढवी, तओ हत्थिणाउरे णयरे मियत्ताए पच्चायाइस्सइ, से णं तत्थ वाउरिएहिं वहिए समाणे तत्थेव हस्थिणाउरे णयरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए० बोहिं० सोहम्मे कप्पे० महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ॥ णिक्खेवो॥१०७॥
॥ पंचमं अज्झयणं समत्तं॥ . भावार्थ - हे भगवन्! वृहस्पतिदत्त पुरोहित यहाँ से काल करके कहां जावेगा? और कहां पर उत्पन्न होगा?
हे गौतम! वृहस्पतिदत्त पुरोहित ६४ वर्ष की परमायु को पाल कर भोग कर आज ही दिन के तीसरे भाग में शूली से भेदन किये जाने पर कालावसर में काल करके इस रत्नप्रभा नामक पृथ्वी- नरक में उत्पन्न होगा एवं प्रथम मृगापुत्र अध्ययन की भांति संसार भ्रमण करता हुआ यावत् पृथ्वीकाय में लाखों बार उत्पन्न होगा। वहाँ से निकल कर हस्तिनापुर नगर में मृग रूप से जन्म लेगा। वहाँ पर शिकारियों के द्वारा मारा जाने पर उसी हस्तिनापुर नगर में श्रेष्ठिकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा। वहाँ सम्यक्त्व प्राप्त करेगा और काल करके सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा तथा वहाँ संयम का पालन कर कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त करेगा। निक्षेप - उपसंहार पूर्व की भांति समझ लेना चाहिये। ... विवेचन - 'वृहस्पतिदत्त पुरोहित पूर्व जन्म में कौन था? और उसने ऐसा कौन सा घोर कर्म किया था, जिसका फल उसे इस जन्म में इस प्रकार मिल रहा है?' इस जिज्ञासा का
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