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________________ तृतीय अध्ययन अभग्नसेन चोर सेनापति बना दिवसे विउलं असणं ४ उवक्खडावेइ उवक्खडावेत्ता मित्त-णाइ-णियग-सयणसंबधि परियणं आमंतेइ आमंतित्ता जाव तस्सेव मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि परियणस्स पुरओ एवं वयासी जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि गब्भगयंसि समासि इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूए तम्हा णं होउ अम्हं दारए अभग्गसेणे णामेणं तए णं से अभंग्गसेणे कुमारे पंचधाईए जाव परिवढइ ॥ ७४ ॥ भावार्थ तब उस चोर सेनापत्नी स्कंदश्री ने नौ मास के पूर्ण होने पर पुत्र को जन्म दिया। विजय नामक चोर सेनापति उस बालक का महान् ऋद्धि (वस्त्र सुवर्ण आदि) सत्कार - सम्मान के समुदाय से दस दिन तक स्थिति पतित-कुल क्रमागत उत्सव विशेष करता है । तत्पश्चात् विजय चोर सेनापति उस बालक के जन्म से ग्यारहवें दिन महान् अशन, पान, 'खादिम, स्वादिम को तैयार करवाता है तथा मित्र, ज्ञाति, स्वजन आदि को आमंत्रित करता है और उन्हें सत्कार पूर्वक जीमाता है तदनन्तर यावत् उनके सामने कहता है कि - "हे देवानुप्रियो ! जिस समय यह बालक गर्भ में आया था, उस समय इसकी माता को एक दोहद उत्पन्न हुआ . था और वह सब तरह से अभग्न रहा इसलिए हमारा यह बालक 'अभग्नसेन' इस नाम से हो अर्थात् इस बालक का नाम अभग्नसेन रखा जाता है।” तदनन्तर वह अभग्नसेन कुमार पांच धायमाताओं के द्वारा पोषित होता हुआ यावत् वृद्धि को प्राप्त होने लगा । पुत्र का जन्म माता पिता आदि के लिये अथाह हर्ष का कारण होता है अतः - विवेचन पुत्र जन्म से सारे घर परिवार में विविध प्रकार से खुशी मनाई जाती है । अभग्नसेन कुमार के जन्म पर विजयसेन चोर सेनापति द्वारा उत्सव महोत्सव आयोजित किये गये । कुल क्रमागत-कुल परंपरा से चले आने वाले पुत्र जन्म संबंधी अनुष्ठान विशेष को 'स्थिति पतित' कहते हैं जो कि दश दिन में संपन्न होता है। Jain Education International - ८५ अभग्नसेन चोर सेनापति बना तसे अभग्गणे कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था अट्ठ दारियाओ जाव अट्ठओ दाओ..उप्पिंपासा० भुंजमाणे विहरड़ । तणं से विजए चोर सेणावई अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते । तए णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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