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________________ तृतीय अध्ययन - निर्णय का नरक उपपात ७६ कठिन शब्दार्थ - तवएसु - तवों पर, कवल्लीसु - कवल्ली-कडाहा-गुड़ आदि पकाने का पात्र विशेष में, कंदुएसु - कंदु-हांडे-एक प्रकार का बर्तन विशेष जिसमें मांड आदि पकाया जाता है-में, भज्जणएसु - भर्जनक-भूनने का पात्र विशेष, इंगालेसु - अंगारों पर, तलेंति - तलते थे, भज्जेंति - भूनते थे, सोलेंति - शूल से पकाते थे, रायमग्गे - राजमार्ग के, अंतरावणंसि - अन्तर-मध्यवर्ती आपण-दूकान पर अथवा राजमार्ग की दूकानों के भीतर, अंडयपणिएणं - अण्डों के व्यापार से, वित्तिं कप्पेमाणा - आजीविका करते हुए, विहरंति - विचरते-समय व्यतीत करते थे। ____ भावार्थ - तदनन्तर निर्णय नामक अंडवाणिज के अनेक वेतनभोगी पुरुष बहुत से काकी यावत् मुर्गी के अण्डों तथा अन्य जलचर स्थलचर और खेचर आदि जंतुओं के अण्डों को तवों पर, कडाहों पर, हांडों में और अंगारों पर तलते थे, भूनते थे तथा पकाते थे। तलते हुए, भूनते हुए और पकाते हुए राजमार्ग के मध्यवर्ती दूकानों पर अथवा राजमार्ग की दूकानों के भीतर अण्डों के व्यापार से आजीविका करते हुए समय व्यतीत करते थे। निर्णय का नरक उपपात .. अप्पणावि य णं से णिण्णए अंडवाणियए तेहिं बहूहिं काइअंडएहि य जाव कुक्कुडिअंडएहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च....... आसाएमाणे विसाएमाणे विहरइ। तए णं से णिण्णए अंडवाणियए एयकम्मे ४ सुबहुं पावकम्मं समजिणित्ता एगं वाससहस्सं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए उक्कोससत्तसागरोवमठिइएसु णेरइएसु णेरइयत्ताए उववण्णे॥७०॥ - भावार्थ - और वह निर्णय नामक अंडवाणिज स्वयं भी अनेक काकी यावत् कुकडी के अण्डों को जो कि पकाये हुए, तले हुए और भूने हुए थे के साथ सुरा आदि पंचविध मदिराओं का आस्वादन आदि करता हुआ जीवन व्यतीत कर रहा था। - तदनन्तर वह निर्णय नामक अंडवाणिज इस प्रकार के पाप कर्मों में तत्पर हुआ, इन्हीं पापपूर्ण कर्मों में प्रधान, इन्हीं कर्मों के विज्ञान वाला और यही पाप कर्म उसका आचरण बना हुआ था ऐसा वह निर्णय अत्यधिक पाप रूप कर्म को उपार्जित करके एक हजार वर्ष की परम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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