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________________ मनःपर्यवज्ञान का स्वामी ७९ ************************************************************************************ गर्भज मनुष्यों को ही मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न हो सकता है, प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को नहीं। विवेचन - प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत-जो संयम में (चारित्र में) शिथिलता उत्पन्न करें, उसे 'प्रमाद' कहते हैं। १. मद्य २. विषय ३. कषाय ४. निद्रा और ५. विकथा, ये पांच प्रमाद हैं। जो साधु, जिस समय इनमें प्रवृत्त हो, वह उस समय 'प्रमत्त संयत' कहलाता है तथा जिस समय इनमें प्रवृत्त न हो, उस समय 'अप्रमत्त संयत' कहलाता है। ___ यहाँ अप्रमत्त संयत का अर्थ-सातवें गुणस्थान से बारहवें गुणस्थानवर्ती जीव समझना चाहिए। मन:पर्यायज्ञान विशिष्ट गुण के कारण उत्पन्न होता है। वैसे गुण अप्रमत्त साधु में ही हो सकते हैं, प्रमादी साधु में नहीं। जइ अपमत्त संजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेजवासाउय कम्मभूमियगब्भवक्कं तियमणुस्साणं, किं इड्डीपत्तअपमत्त संजय-सम्मदिट्ठिपजत्तगसंखेजवासाउय-कम्मभूमिय गब्भवक्कंतियमणुस्साणं, अणिड्डीपत्त अपमत्तसंजयसम्मदिट्ठि-पजत्तग-संखेजवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं? गोयमा! इड्डीपत्त-अपमत्तसंजयसम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेजवासाउय-कम्मभूमियगब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, णो अणिड्डीपत्त-अपमत्तसंजयसम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज वासाउय-कम्मभूमिय गब्भवक्कंतियमणुस्साणं-मणपज्जवणाणं समुप्पज्जइ॥ १७॥ अर्थ - प्रश्न - यदि अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को उत्पन्न होता है, तो क्या ऋद्धिप्राप्त अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को उत्पन्न होता है या ऋद्धि अप्राप्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को उत्पन्न होता है? उत्तर - गौतम! मनः पर्यायज्ञान १. ऋद्धिप्राप्त २. अप्रमत्त ३. संयत ४. सम्यग्दृष्टि ५. पर्याप्तक ६. संख्येय वर्ष की आयुष्य वाले ७. कर्मभूमिज ८. गर्भव्युत्क्रान्तिक ९. मनुष्यों को उत्पन्न होता है, ऋद्धि अप्राप्त अप्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को उत्पन्न नहीं होता। . विवेचन - ऋद्धि प्राप्त, ऋद्धि अप्राप्त-धर्माचरण के द्वारा निर्जरा होकर या पुण्योदय होकर जो विशिष्ट शक्ति-लब्धि मिलती है, उसे यहाँ 'ऋद्धि' कहा है। ऐसी लब्धियाँ २८ हैं। उत्तरोत्तर अपूर्व-अपूर्व अर्थ के प्रतिपादक विशिष्ट श्रुत में प्रवेश करते हुए उससे उत्पन्न तीव्र, तीव्रतर शुभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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