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नन्दी सूत्र
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होता है और किसी का हीयमान नहीं भी होता। लोक तक जानने वाला अवधिज्ञान घटते-घटते जघन्य अवधि-क्षेत्र जानने वाला तक बन सकता है।
जो अवधिज्ञान वर्द्धमान हो, या हीयमान हो, या मिश्र हो, उसे 'अनवस्थित', अवधिज्ञान कहते हैं तथा जो अवधिज्ञान न वर्धमान हो, न हीयमान हो, न मिश्र हो, उसे 'अवस्थित' अवधिज्ञान कहते हैं।
मिश्र अनवस्थित अवधिज्ञान में किसी एक दिशा का ज्ञान बढ़ता है और उससे अन्य दिशा का ज्ञान घटता है। यह हीयमानक अवधिज्ञान है।
५. प्रतिपाति अवधिज्ञान अब सूत्रकार अवधिज्ञान के ५ वें भेद प्रतिपाति का स्वरूप वर्णन करते हैं -
से किं तं पडिवाइ ओहिणाणं? पडिवाइ ओहिणाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिजइभागं वा, संखिजइभागं वा वालग्गं वा वालग्गपुहुत्तं वा, लिक्खं वा लिक्खपुहुत्तं वा, जूयं वा जूयपुहुत्तं वा, जवं वा जवपुहुत्तं वा, अंगुलं वा अंगुलपुहुत्तं वा, पायं वा पायपुहुत्तं वा, विहत्थिं वा विहत्थिपुहुत्तं वा, रयणिं वा रयणिपुहुत्तं वा, कुच्छिं वा कुच्छिपुहुत्तं वा, धणुं वा धणुपुहुत्तं वा, गाठयं वा गाउयपुहुत्तं वा, जोयणं वा जोयणपुहुत्तं वा, जोयणसयं वा जोयणसयपुहुत्तं वा, जोयणसहस्सं वा जोयणसहस्सपुहुत्तं वा, जोयणलक्खं वा जोयणलक्खपुहुत्तं वा (जोयणकोडिं वा जोयणकोडिपुत्तं वा, जोयणकोडाकोडिं वा जोयणकोडाकोडिपुहुत्तं वा, जोयणसंखिजं वा जोयणसंखिजपुहुत्तं वा, जोयणअसंखेज वा जोयणअसंखेजपुहुत्तं वा) उक्कोसेणं लोग वा पासित्ताणं पडिवइजा। से त्तं पडिवाइ ओहिणाणं॥१४॥
प्रश्न - यह प्रतिपाति अवधिज्ञान क्या है?
उत्तर - जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग (मध्य से) संख्यातवां भाग, बालाग्र या बालाग्र पृथक्त्व, लिक्षा-लींख या लींख पृथक्त्व, जूका-जूं, या जूका पृथक्त्व, यव-जौ या यव पृथक्त्व, अंगुल या अंगुल पृथक्त्व, पाद - पैर या पाद पृथक्त्व, वितस्ति-बेंत या वितस्ति पृथक्त्व, रलि-हाथ या रनि पृथक्त्व, कुक्षि-कूँख या कुक्षि पृथक्त्व, धनुष्य या धनुष्य पृथक्त्व, गव्यूत-कोश या गव्यूत पृथक्त्व, योजन या योजन पृथक्त्व, सौ योजन या सौ योजन पृथक्त्व, हजार योजन या
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