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नन्दी सूत्र
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भेद - आनुगामिक अवधिज्ञान के दो भेद हैं। यथा-१. अन्तगत-जिससे एक दिशा के रूपी पदार्थ जाने जायें और २. मध्यगत-जिससे सभी दिशा के रूपी पदार्थ जाने जायें।
अब सूत्रकार अन्तगत अवधिज्ञान के भेद बताते हैं।
से किं तं अंतगयं? अंतगयं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा-पुरओ अंतगयं, मग्गओ अंतगयं, पासओ अंतगयं।
प्रश्न - वह अन्तगत अवधिज्ञान क्या है? उत्तर - अंतगत के तीन भेद हैं - १. पुरतः अन्तगत २. मार्गत: अन्तगत और ३. पार्श्वत: अन्तगत।
विवेचन - जिस अवधिज्ञान से किसी एक ही दिशा के रूपी पदार्थ जाने जा सकते हैं, उसे 'अन्तगत अवधिज्ञान' कहते हैं।
संज्ञा हेतु - इस अवधिज्ञान का स्वामी, अपने अवधिज्ञान से जिस दिशा का जितना क्षेत्र प्रकाशित है, उस क्षेत्र के अंत में' 'गत'-रहता है, अतएव इस अवधिज्ञान को 'अन्तगत अवधिज्ञान' कहते हैं।
दृष्टांत - जिस प्रकार किसी दीपक पर पूरा आवरण लगा दिया हो और फिर, एक ही दिशा से उस पर से आवरण हटा दिया हो, तो उस दीपक से एक ही दिशा-क्षेत्र के पदार्थ देखे जा सकेंगे, अन्य दिशा के नहीं। क्योंकि वह अब तक पाँच दिशाओं से आवृत्त, है और एक दिशा से ही अनावृत्त बना है। उसी प्रकार अन्तगत अवधिज्ञान से किसी एक ही दिशा के पदार्थ जाने जा सकते हैं, अन्य दिशाओं के पदार्थ नहीं जाने जा सकते, क्योंकि अन्तगत अवधिज्ञान की उत्पत्ति में अवधिज्ञान के आवरक कर्मों का ऐसा ही विचित्र क्षयोपशम होता है कि उससे एक ही दिशा के पदार्थ जाने जा सकते हैं, अन्य दिशा के नहीं।
भेद - अन्तगत अवधिज्ञान के तीन भेद इस प्रकार हैं
१. पुरतः अन्तगत-जिससे सामने की एक ही दिशा के रूपी पदार्थ जाने जा सकें। २. मार्गत: अन्तगत-जिससे पीठ पीछे की एक ही दिशा के रूपी पदार्थ जाने जा सके। ३. पार्श्वत: अंतगत-जिससे दक्षिणी पार्श्व के या वामपार्श्व के एक दिशा के रूपी पदार्थ जाने जा सके।
से किं तं पुरओ अंतगयं? पुरओ अंतगयं-से जहा णामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलियं वा अलायं वा मणिं वा पईवं वा जोइं वा पुरओ काउं पणुल्लेमाणे पणुल्लेमाणे गच्छेज्जा, से त्तं पुरओ अंतगयं।
प्रश्न - वह पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान क्या है ? उत्तर - दृष्टान्त - जैसे किसी नाम वाला कोई पुरुष है, वह अंधकार में कहीं जा रहा है।
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