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नन्दी सूत्र
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इसके विपरीत भेरी की सम्यक् रक्षा करने वाले, भेरीवादक के समान कुछ शिष्य, असत् मताग्रह और स्वार्थ को एक ओर रखकर, सूत्रार्थ को मान देते हैं, सूत्र और अर्थ को अविच्छिन्न रखते हैं, भूल जाने पर, दूसरे गीतार्थों से पूछकर पूरा करते हैं, अजैन ग्रंथों के मिश्रण से रहित शुद्ध रखते हैं। ऐसे श्रुत के भक्त, श्रुत के मित्र शिष्य, श्रुतज्ञान के योग्य हैं। ऐसे शिष्य सूत्रार्थ की रक्षा करते हैं, वे आगामी भव में सुलभ-बोधी बनते हैं और स्व-पर को कर्म रोग से मुक्त बनाते हैं।
१४. अहीर-अहीरन का दृष्टांत कुछ शिष्य अपना दोष न देखकर दूसरों पर दोष मढ़ने वाले होते हैं। इस विषय में अहीर दम्पति का दृष्टांत है। एक गाँव में एक अहीर, अहीरन के साथ रहता था। एक दिन वह बेचने के लिए घी से भरे हुए घड़े, गाड़ी में रखकर, अपनी पत्नी के साथ नगर में पहुंचा। बाजार में गाड़ी रोककर वह घड़े उतारने लगा। अहीर, गाड़ी में से घड़े उठाकर पत्नी को देने लगा और वह पृथ्वी पर रखने लगी।
इस उठाने रखने में दोनों में से किसी की भूल से, घी का घड़ा नीचे गिरकर फूट गया और घी दूल गया। घी की इस हानि से दुःखी होकर अहीर, अहीरन को गालियाँ देने लगा। जैसे-"हा, कुलटा! पर पुरुष से विडम्बना की इच्छा वाली! तू नगर के इन तरुण एवं रमणीय युवकों पर मोहित है। तझे घडे का ध्यान ही कहाँ है?"
इन कठोर वचनों को सुनकर अहीरन को भी क्रोध आ गया। उसकी भौंहें तन गई। उसके ओंठ फड़कने लगे। उसने अपनी भाषा में कहा - 'गँवार कहीं के! स्वयं ने मुझे गड़ा पकड़ाया ही नहीं और छोड़ दिया। तेरा खुद का मन, नगरी की इन मदमाती कामिनियों के मनोहर मुखड़ों को देखने में लगा है और मुझे कोसता है।'
___ यह सुनकर उस अहीर को अधिक क्रोध आया और वह अहीरन की सात पीढ़ियों को भी गालियां देने लगा। तब वह निर्लज्ज स्त्री भी उबल पड़ी। अहीर, स्त्री के केशों को पकड़ कर खींचने और मारने लगा, स्त्री भी अपने दो-दो हाथ दिखाने लगी। बढ़ते-बढ़ते दोनों ने डंडे सम्हाल लिये। डंडे की मार से दोनों को चोटे लगी और घी के घड़े भी फूट गए। बहुत-सा घी भूमि पर बह गया और गाय कुत्ते, चाटने लगे। उधर गाड़ी में कुछ घड़े बचे थे, उन्हें उचक्के अपहरण कर गये। परन्तु वे दोनों तो लड़ते ही रहे। अपनी भूल स्वीकार न करके, किसी भी प्रकार दूसरों पर दोष मढ़ने की उनकी वृत्ति चलती रही। उनके साथी दूसरे अहीर अपना-अपना घी बेचकर गाँव को लौट गए। जब वे थक गए, तब मध्यस्थियों की बात मानी। उनका युद्ध समाप्त हुआ और वे धीरे-धीरे स्वस्थ हुए। उन्होंने आते ही थोड़ा घी बेचा था उसका मूल्य लेकर वे
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