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नन्दी सूत्र
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दोनों की सेवा से आचार्यश्री को बहुत समय तक सूत्रार्थ देते हुए भी अशक्तता नहीं आती थी। अतएव उनसे निजी तौर पर, दोनों शिष्यों को बहुत वर्षों तक, विपुलतर श्रुतज्ञान की प्राप्ति हुई। संघ में दोनों का खूब साधुवाद हुआ। गच्छांतर में भी उन्हें बहुत श्रुतज्ञान की प्राप्ति हुई तथा भवान्तर में सुगति पाते हुए वे मोक्षाधिकारी बने। ऐसे वैयावृत्यकारी शिष्य, श्रुतज्ञान के पात्र हैं।...
१३. भेरीवादक का दृष्टांत कुछ श्रोता, भेरी-नाशक के समान ज्ञान के प्रति भक्ति से रहितं तथा ज्ञान के शत्रु होते हैं।
कुबेर निर्मित्त द्वारिका नगरी में, दक्षिण भरत के स्वामी श्रीकृष्ण राज्य कर रहे थे। किसी समय उस नगरी में रोग का उपद्रव उत्पन्न हो गया।
प्रथम स्वर्ग के अधिपति ‘शक्र' इन्द्र अपनी सुधर्म सभा में बैठे हुए थे। सभा में 'पुरुष-गुण विचारणा' का विषय आया, तो उन्होंने 'अवधि' से द्वारिका स्थित श्रीकृष्ण को देखकर सामान्य रूप से उनकी प्रशंसा करते हुए कहा-"अहो! श्रीकृष्ण धन्य हैं कि-वे दोष-बहुल वस्तु में भी गुण को ही ग्रहण करते हैं, लेशमात्र भी दोष ग्रहण नहीं करते तथा नीच युद्ध भी नहीं करते।"
___ इस प्रकार इन्द्र द्वारा की गई श्रीकृष्ण की प्रशंसा को एक मिथ्यादृष्टि देव सहन नहीं कर . सका। वह पृथ्वी पर आया और जिस मार्ग से श्रीकृष्ण, भ० अरिष्टनेमि के वन्दनार्थ जाने वाले थे, मार्ग में एक मरे हुए से कुत्ते का रूप बनाकर पड़ गया। उस कुत्ते में इतनी दुर्गन्ध थी कि 'उसके निकट होकर किसी को निकलना बहुत कठिन था।' उसका वर्ण अत्यंत काला था, स्पर्श अत्यंक कर्कश और रूक्ष था, आकार बहुत भयावना था, शरीर में सैकड़ों कीड़े बिलबिला रहे थे और मुँह खुला हुआ था। परंतु उसमें दाँत अत्यंत श्वेत, चमकीले, श्रेणीबद्ध और सुन्दराकार थे।
यथासमय श्रीकृष्ण, नेमि-वन्दना को निकले। आगे पैदल चलने वाले लोग, जब उस कुत्ते के निकट पहुंचे, तो वे उसकी दुर्गन्ध से अत्यंत संत्रस्त होकर नाक ढंकने लगे, मार्ग को छोड़कर इधर-उधर होकर जाने लगे और कुत्ते के रूप, गंध तथा दशा की निन्दा करने लगे।
जब श्रीकृष्ण ने अपने आगे चलने वाले लोगों को यों नाक ढंकते और मार्ग छोड़ते देखा, तो उन्होंने अपने निकटवर्ती सेवकों से इसका कारण पूछा। उसने कारण बताया, किन्तु श्रीकृष्ण ने इस कारण से मार्ग नहीं छोड़ा। वे उसी मार्ग पर चलते रहे। जब वे उस मृत-से कुत्ते के पास पहुंचे, तो उन्होंने उस कुत्ते की अवस्था देखी, परन्तु उन्होंने उसके किसी भी दुर्गुण की निन्दा नहीं की, वरन् उन्होंने उस कुत्ते में रही एकमात्र गुणरूप श्वेत दंत-पंक्ति की प्रशंसा करते हुए कहा-"अहो! इसकी दन्त-पंक्ति तो मरकत मणि (यह कृष्ण वर्ण होता है) के भाजन में रखी हुई मोती की श्रेणी के समान कितनी भव्य लगती है।"
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