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________________ २८ . नन्दी सूत्र इस प्रकार न तो वे स्वयं श्रुतज्ञान का सम्यक् लाभ उठा पाते हैं, न दूसरे श्रोताओं को लाभ लेने देते हैं। ऐसे अन्तराय भूत श्रोता, व्याख्यान स्थल में प्रवेश के ही अयोग्य हैं। कुछ श्रोता मेढ़े के समान अन्तराय नहीं करने वाले होते हैं। मेढ़ा, जलाशय के बाहर ही घुटने टेक कर पानी में थोड़ा-सा मुँह डालकर पानी पीता है। वह पानी को स्वच्छ बनाये रखते हुए अपनी प्यास बुझाता है और दूसरों के लिए भी स्वच्छ जल पीने का अवसर देता है। जो श्रोता मेढ़े के समान होते हैं। वे व्याख्यान स्थल में जहाँ भी पीछे स्थान मिलता है, बिना किसी का ध्यान भंग किये चुपचाप स्थिर होकर बैठ जाते हैं और एकाग्रता पूर्वक सुनते हैं। यदि प्रश्न पूछना हो, तो प्रासंगिक उचित और आवश्यक प्रश्न पूछते हैं। जिससे उन्हें भी श्रुतज्ञान का अच्छा और विशेष लाभ मिलता है और दूसरों को भी अच्छा व विशेष लाभ मिलता है। ऐसे अन्तराय न करने वाले श्रोता, व्याख्यान स्थल में प्रवेश के योग्य हैं। ८-९. मच्छर और जलौका का दृष्टांत कुछ श्रोता मच्छर के समान असमाधिकारक होते हैं, जैसे मच्छर डंक लगाकर विष पहुँचाता है और अविकृत रक्त चूस कर प्राणियों को असमाधि पहुंचाता है, वैसे ही कुछ श्रोता, आचार्य को कुवचन कहकर अपमानित करते और कष्ट देकर असमाधि पहुँचाते हैं, वे असमाधि पहुँचाते हुए ज्ञान ग्रहण करते हैं अथवा जब तक आचार्य असमाधि से उदास खिन्न या कोपायमान न हो जायें, तब तक उनकी बात को विनय, एकाग्रता और स्थिरता पूर्वक नहीं सुनते। ऐसे असमाधिकारक श्रोता, ज्ञान के अपात्र हैं। ___कुछ श्रोता, जलौका के समान समाधिकारक होते हैं। जैसे-जलौका जिस समय विकृत रस चूसती है, तब भी साता का वेदन होता है और विकृत रस चूस लेती है, तब भी परिणाम में साता. का वेदन होता है। ऐसे ही कुछ श्रोता, आचार्य को विनययुक्त वचन, कहकर उनका बहुमान कर और उन्हें सुख देकर समाधि पहुँचाते हैं, वे समाधि पहुँचाते हुए ज्ञान ग्रहण करते हैं। कभी प्रमादवश उन्हें असमाधि हो जाये, तो विनयपूर्वक उनकी असमाधि दूर करते हैं। ऐसे समाधिकारक श्रोता, ज्ञान के पात्र हैं। १०-११. बिल्ली और जाहक का दृष्टांत कुछ श्रोता बिल्ली के समान अविनीत होते हैं। बिल्ली का ऐसा दुष्ट स्वभाव होता है कि - वह प्रायः भाजन में दूध आदि नहीं पीती पर स्वामी के भय से वह भाजन को ठोकर लगाकर दूध आदि को भूमि पर बहा देती है और फिर उसे पीती है। इससे उसे पूरा दूध पीने का नहीं मिलता, दूध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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